ब्रह्माकूमारी संस्थान रांची में मना जगदम्बा सरस्वती-स्मृति दिवस

रांची (ब्यूरो) । ब्रह्माकुमारी संस्थान की प्रथम अध्यक्षा जगदम्बा मां की स्मृति दिवस के पूर्व संध्या पर ब्रह्माकुमारी संस्थान में कार्यक्रम का आयोजन किया गया. कार्यक्रम में सरला बिरला विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ गोपाल पाठक ने कहा कि ज्ञान का प्रकाश जीवन को आलोकित करता है. परंतु मानवता के इतिहास में ऐसे भी महान विभूतियां हुई हैंं जो स्वयं ज्ञान का प्रकाश बनकर इस संसार को इतना आलोकित कर देते हैं कि उनकी स्मृतियां युगों-युगों तक अज्ञानता के तिमिर का शमन करके ज्ञान के प्रकाश से मानव हदय को आलोकित करती रहती है. ऐसी ही भारतीय मनीषा की शिरोमणि प्रतिनिधि, ईश्वरीय ज्ञान की कालजयी अवतार, रूद्र-यज्ञ-रक्षक मातेश्वरी श्री जगदम्बा ने इस धरा पर युगांतकारी परिवर्तन का संवाहक बनकर हजारों ब्रह्मवत्सों के मानस पटल पर परमात्मा शिव के ईश्वरीय ज्ञान की जो अमिट छाप लगाई है. उसने वर्तमान समय में भी लाखों मनुष्य आत्माओं को मातृत्व की सुखद आंचल की छत्रछाया की पालना करके अपने ममतामयी स्वरूप को प्रकट किया.

वर्चस्व के मिथक तोडक़र

आर्ट ऑफ लिविंग के रूपेश ने कहा कि आध्यात्मिक ज्ञान और शक्तियों की चैतन्य दिव्य मू्ति मातेश्वरी श्री जगदम्बा, कर्मयोग की ज्ञान-गंगा बहाकर आध्यात्मिक क्षेत्र में पुरूष वर्चस्व के मिथक तोडक़र यह संदेश देने में सफल रही कि आध्यात्मिक पुरूषार्थ और साधना के लिए त्याग,

तपस्या और आत्म-अनुभूति ही यथार्थ सत्य है, लिंग-भेद और बाहरी पहचान का कोई महत्व नहीं

कार्यगक्रम में उपस्थित श्रमण संस्कृति संस्थान के अंकित जैन ने कहा ने कहा कि जगदम्बा सरस्वती ने मात् शक्ति के हाथ में इस भारत को पून: स्वर्ग बनाने का ध्वज दिया है. हमें मातेश्वरी के समान आज्ञाकारी, वफादार एवं फरमानबरदार बनना है. उनके द्वारा बताई गई अनमोल शिक्षा को जीवन में उतारना है. हमें मातेश्वरी के समान निमित्त और निर्माण चित्त बनना है.

साहस भरा फैसला

ब्रह्माकुमारी निर्मला बहन ने कहा कि मातेश्वरी जी ने जिस समय आध्यात्मिक साधना द्वारा अज्ञानता में भटकते समस्त मानव के हृदय को ज्ञान के प्रकाश से आलोकित करने के पथ को चुना था, सन 1936 का वह कालखंड एक नारी के लिए महान साहस

भरा फैसला था. क्योंकि उस समय का पुरूष प्रधान समाज धर्म की सुरक्षा के नाम पर नारियों को घर के पर्द के अंदर कैद करना ही अपना छदम धर्म समझता था. मातेश्वरी ने राजयोग की साधना और सहनशीलता से सारे संसार के सामने धर्म के सत्य मर्म को स्पष्ट किया कि आत्म-अनुभूति और परमात्म-अनुभूति से ही सत्य धर्म की स्थापना होती है, नारियों को पर्दे से

ढककर नहीं.

2024-06-23T17:34:59Z dg43tfdfdgfd