रॉ, सीबीआई, एनआईए, डीआरआई: इन खुफिया और जांच एजेंसियों का काम और टीम

कल्पना कीजिए आप एक बहुत बड़े महल में रहते हैं. इस महल में बहुत से कमरे हैं जिनमें से कुछ खास हैं. इन खास कमरों में कुछ गुप्तचर रहते हैं जिनका काम है महल के बाहर और अंदर होने वाली हर गतिविधि पर नजर रखना. अगर कोई अनजान व्यक्ति महल में घुसने की कोशिश करता है या महल के अंदर कोई गड़बड़ करता है तो ये गुप्तचर उसे पकड़कर कानून के हवाले कर देते हैं.

भारत की खुफिया और जांच एजेंसियां भी कुछ इसी तरह काम करती हैं. इन एजेंसियों का काम देश की सुरक्षा को खतरों से बचाना है. ये एजेंसियां देश के बाहर और अंदर होने वाली हर तरह की गतिविधियों पर नजर रखती हैं और आतंकवाद, जासूसी, भ्रष्टाचार जैसे अपराधों को रोकने का काम करती हैं.

इस स्पेशल स्टोरी में आप भारत की खुफिया और जांच एजेंसियों के बारे में विस्तार से जानेंगे. यहां जानेंगे कि आखिर कैसे पूरा सिस्टम काम करता है और पूरी टीम किस तरह बनाई जाती है.

इंटेलिजेंस और इन्वेस्टिगेशन एजेंसी में फर्क समझिए पहले

भारत की सुरक्षा के लिए दो तरह की अहम एजेंसियां काम करती हैं. खुफिया (Intelligence) और जांच (Investigation) एजेंसियां. दोनों ही देश की सुरक्षा के लिए ज़रूरी हैं लेकिन इनके काम करने का तरीका अलग-अलग है.

खुफिया एजेंसियां ये पता लगाती हैं कि देश के बाहर और अंदर कहीं कोई खतरा तो नहीं पैदा हो रहा. जैसे कोई देश भारत के खिलाफ साजिश तो नहीं रच रहा या देश के अंदर कोई आतंकी हमला करने की तो फिराक में नहीं है.

वहीं जांच एजेंसियां गुप्तचर एजेंसियों से मिली जानकारी के आधार पर जांच करती हैं. अगर खुफिया एजेंसियों को कोई खतरे का पता चलता है तो वो जांच एजेंसियों को बताती हैं. फिर जांच एजेंसी उस मामले की पूरी पड़ताल करती हैं, सबूत इकट्ठे करती हैं और अपराधियों को पकड़ने की कोशिश करती हैं.

देश की मुख्य खुफिया और जांच एजेंसियां कौन सी हैं?

इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) भारत की सबसे पुरानी घरेलू खुफिया एजेंसी है जो देश के अंदर आतंकवाद, जासूसी जैसी गतिविधियों पर नजर रखती है. रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (RAW) एक विदेशी खुफिया एजेंसी है जो दूसरे देशों में क्या हो रहा है इस पर नजर रखती है. सीबीआई भ्रष्टाचार और बड़े अपराधों की जांच करने वाली एजेंसी है, खासकर केंद्र सरकार के कर्मचारियों से जुड़े मामलों में जांच करती है. नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (NIA) खासतौर पर आतंकवाद से जुड़े मामलों की जांच करती है. 

वहीं नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (NCB) भारत में नशीले पदार्थों की तस्करी और अवैध इस्तेमाल को रोकने का काम करती है. डायरेक्टरेट ऑफ रेवेन्यू इंटेलिजेंस (DRI) सीमा शुल्क चोरी और कर चोरी से जुड़े मामलों पर नजर रखती है. 

भारत की आंख और कान: इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB)

गृह मंत्रालय के अंतर्गत आने वाली ये एजेंसी देश के अंदर होने वाली हर गतिविधि पर पैनी नज़र रखती है. इसकी स्थापना साल 1887 में हुई थी, तब इसे 'सेंट्रल स्पेशल ब्रांच' के नाम से जाना जाता था. माना जाता है कि दुनियाभर में इस तरह की सबसे पुरानी एजेंसी है.

1968 तक ये अकेली एजेंसी थी जो देश के बाहर और अंदर दोनों जगहों से खुफिया जानकारी जुटाती थी. लेकिन 1968 के बाद विदेशी खुफिया जानकारी के लिए अलग से 'रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (RAW)' का गठन किया गया. इसके बाद से IB का मुख्य काम देश के अंदर की गतिविधियों पर नज़र रखना और आंतरिक सुरक्षा सुनिश्चित करना हो गया.

IB को अपने गुप्त कामकाज के लिए जाना जाता है. ये एजेंसी देश के अंदर गुप्त जानकारी जुटाने में लगी रहती है. साथ ही, ये जासूसी करने वालों को पकड़ने और आतंकवाद रोकने का काम भी करती है. इस एजेंसी में ज्यादातर लोग पुलिस (IPS) या टैक्स विभाग (IRS) से आते हैं, कुछ लोग सेना से भी लिए जाते हैं. लेकिन इंटेलिजेंस ब्यूरो के मुखिया यानी डायरेक्टर इंटेलिजेंस ब्यूरो (DIB) हमेशा पुलिस (IPS) से ही होते हैं.

इंटेलिजेंस ब्यूरो को अपने काम में कई सफलताएं मिली हैं, लेकिन दुर्भाग्य से इन कामों के बारे में ज़्यादा जानकारी सार्वजनिक नहीं की जाती. ये एजेंसी इतनी गुप्त तरीके से काम करती है कि इसके कामकाज या इसकी गतिविधियों के बारे में बहुत कम ठोस जानकारी मिल पाती है.

परदेस में भारत की आंख: रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (RAW)

रॉ भारत की ऐसी एजेंसी है जो दूसरे देशों में क्या हो रहा है, इस पर नजर रखती है. ये देश के लिए विदेशी खुफिया जानकारी जुटाने का अहम काम करती है. रॉ के प्रमुख को कैबिनेट सेक्रेटेरियट में 'सेक्रेटरी (रिसर्च)' कहा जाता है. ये सीधे प्रधानमंत्री और ज्वॉइंट इंटेलिजेंस कमेटी को जवाबदेह होते हैं. ये किसी भी मामले पर भारत की संसद को जवाब नहीं देते और इसी वजह से ये सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम के दायरे में भी नहीं आते. 

रमेशवर नाथ काओ RAW के पहले प्रमुख थे. उनके 9 साल के कार्यकाल में रॉ दुनिया की खुफिया एजेंसियों में एक अहम नाम बनकर उभरा. 1975 में सिक्किम को भारत में मिलाने जैसे बड़े घटनाक्रमों में भी रॉ की भूमिका रही है.

रॉ को अमेरिका की खुफिया एजेंसी CIA की तर्ज पर ही बनाया गया है. सबसे ऊपर होते हैं 'सेक्रेटरी (रिसर्च)' होते हैं. उनके नीचे एक 'एडिशनल सेक्रेटरी' होता है जो खास ऑपरेशनों और अलग-अलग देशों से मिली खुफिया जानकारी को संभालता है. फिर कई 'जॉइंट सेक्रेटरी' होते हैं जो अलग-अलग देशों या क्षेत्रों के लिए जिम्मेदार होते हैं. जैसे एक जॉइंट सेक्रेटरी सिर्फ पाकिस्तान से जुड़े मामलों को देखता होगा, तो दूसरा चीन और दक्षिण-पूर्व एशिया को. इसके अलावा दो 'स्पेशल जॉइंट सेक्रेटरी' इलेक्ट्रॉनिक्स और टेक्निकल विभाग को संभालते हैं.

रॉ का कामकाज पूरी तरह से सीक्रेट है, लेकिन कुछ अंदाजा जरूर लगाया जा सकता है. रॉ का हेड ऑफिस नई दिल्ली में है. इसके अलावा देश के अलग-अलग रीजनल में भी दफ्तर हैं. ये रीजनल ऑफिस विदेशों में मौजूद RAW स्टेशनों से सीधे जुड़े होते हैं. हर रीजनल ऑफिस की जिम्मेदारी एक कंट्रोलिंग ऑफिसर संभालता है. ये अधिकारी विदेश में तैनात फील्ड ऑफिसर्स को दिए गए अलग-अलग प्रोजेक्टों का रिकॉर्ड रखता है.

फील्ड ऑफिसर और डिप्टी फील्ड ऑफिसर मिलकर कई तरह के सूत्रों से जानकारी जुटाते हैं. फिर इस जानकारी को पहले तो एक सीनियर फील्ड ऑफिसर या डेस्क ऑफिसर जांचता है. इसके बाद डेस्क ऑफिसर ये जानकारी जॉइंट सेक्रेटरी को देता है. वहां से ये एडिशनल सेक्रेटरी के पास जाती है और फिर जरूरत के हिसाब से इसे आगे भेजा जाता है.

भारत की सबसे बड़ी जांच एजेंसी: केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI)

सीबीआई भारत की सबसे प्रमुख जांच एजेंसी है. ये देश के अंदर होने वाले अपराधों की जांच करती है. शुरुआत में CBI को सिर्फ रिश्वतखोरी और सरकारी भ्रष्टाचार के मामलों की जांच के लिए बनाया गया था. लेकिन 1965 में इसके काम का दायरा बढ़ा दिया गया. अब ये केंद्र सरकार के कानूनों के उल्लंघन, कई राज्यों में फैले संगठित अपराध, कई एजेंसियों या अंतरराष्ट्रीय स्तर के मामलों की भी जांच करती है. CBI भी सूचना का अधिकार अधिनियम (RTI) के दायरे में नहीं आती.

जब भी हत्या, अपहरण या आतंकवाद जैसे बड़े अपराध होते हैं, तो CBI से जांच में मदद मांगी जाती है. कई बार पीड़ित पक्ष अदालत में अर्ज़ी लगाकर सीबीआई जांच की मांग करते हैं. सीबीआई के काम को कई विभागों में बांटा गया है: 

  • एंटी करप्शन डिविजन
  • स्पेशल क्राइम्स डिविजन
  • इकनॉमिक ऑफेंस डिविजन
  • पॉलिसी एंड इंटरनेशनल पुलिस कॉपरेशन डिविजन
  • एडमिनिस्ट्रेशन डिविजन
  • डायरेक्टरेट ऑफ प्रॉसिक्यूशन डिविजन
  • सेंट्रल फॉरेंसिक साइंस लेबोरेटरी डिविजन

CBI की अगुवाई एक डायरेक्टर करता है. ये आमतौर पर एक IPS अधिकारी होता है जिसकी रैंक पुलिस महानिदेशक के बराबर होती है. डायरेक्टर को एक खास कमेटी चुनती है. ये कमेटी दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम (DSPE Act) 1946 के तहत बनाई गई है जिसे लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम 2013 के जरिए संशोधित किया गया था. सीबीआई डायरेक्टर का कार्यकाल दो साल का होता है जिसे तीन साल और बढ़ाया जा सकता है.

सीबीआई में कई दूसरे रैंक के अधिकारी भी होते हैं. ये अधिकारी भारतीय राजस्व सेवा (IRS) या फिर IPS से आते हैं. इन रैंकों में शामिल हैं: स्पेशल डायरेक्टर, एडिशनल डायरेक्टर, ज्वाइंट डायरेक्टर, डिप्टी इंस्पेक्टर जनरल ऑफ पुलिस, सीनियर सुपरंटटेंड ऑफ पुलिस,  सुपरंटटेंड, एडिशनल सुपरंटटेंड, डिप्टी सुपरंटटेंड, इंस्पेक्टर, सब-इंस्पेक्टर, असिस्टेंट सब-इंस्पेक्टर, हेड कांस्टेबल, कांस्टेबल. 

आतंकवाद से लड़ने के लिए बनी: राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA)

26/11 मुंबई हमलों के बाद आतंकवाद से बेहतर तरीके से लड़ने के लिए भारत सरकार ने 2008 में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) का गठन किया. ये एक संसद अधिनियम के तहत बनाई गई एजेंसी है. ये एजेंसी आतंकवाद से जुड़े खास मामलों की जांच और उन पर मुकदमा चलाने की जिम्मेदारी लेती है. ये सिर्फ खास मामलों को देखती है. अगर देश की अखंडता, सुरक्षा या गरिमा को कोई खतरा होता है, तो ऐसे मामलों की जांच भी NIA ही करती है.

NIA को कई तरह के अधिकार भी दिए गए हैं:

  • छापेमारी करने का अधिकार
  • संदिग्ध चीजों को जब्त करने का अधिकार
  • संदिग्ध लोगों को गिरफ्तार करने का अधिकार
  • सबूत जुटाने का अधिकार
  • आतंकी संगठनों और उनके सदस्यों का डेटाबेस बनाने और रखने का अधिकार

NIA की अगुवाई एक डायरेक्टर जनरल करता है. ये एक IPS अधिकारी होता है जिसकी रैंक पुलिस महानिदेशक के बराबर होती है. डायरेक्टर जनरल के काम में उनकी मदद के लिए स्पेशल/एडिशनल डायरेक्टर जनरल (ADG) और इंस्पेक्टर जनरल (IG) रहते हैं. पूरे देश में आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में तालमेल बिठाने के लिए NIA के अलग-अलग राज्यों में ब्रांच ऑफिस भी हैं. 

NIA में ऊंचे पदों पर अफसरों की नियुक्ति भारतीय पुलिस सेवा (IPS) या भारतीय राजस्व सेवा (IRS) से प्रतिनियुक्ति के जरिए की जाती है. वहीं, दूसरी तरफ निचले पदों पर भर्ती कर्मचारी चयन आयोग (SSC) की ओर से सीधे परीक्षा के जरिए या फिर अलग-अलग राज्यों की पुलिस से प्रतिनियुक्ति पर लाए जाते हैं. 

आतंकवाद के मामलों की जल्द से जल्द सुनवाई हो, इसीलिए भारत सरकार ने कई स्पेशल कोर्ट बनाए हैं. ये कोर्ट NIA के अलग-अलग पुलिस स्टेशनों में दर्ज मामलों की सुनवाई करते हैं. इन कोर्ट्स को बनाने का आधार NIA एक्ट 2008 की धारा 11 और 22 है. इन अदालतों में जजों की नियुक्ति केंद्र सरकार करती है, लेकिन सिफारिश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस से ली जाती है. NIA की ये विशेष अदालतें उसी तरह से काम करती हैं जिस तरह से सत्र न्यायालय (कोर्ट ऑफ सेशन) काम करते हैं. इन कोर्ट को 1973 की दंड प्रक्रिया संहिता के तहत दिए गए सभी अधिकार प्राप्त हैं.

ड्रग्स के खिलाफ लड़ाई में सबसे आगे: नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (NCB)

NCB की स्थापना 1986 में हुई थी. ये एजेंसी देश के अलग-अलग राज्यों की पुलिस और केंद्रीय विभागों के साथ मिलकर काम करती है. ड्रग्स की तस्करी को रोकने के लिए अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का पालन भी सुनिश्चित करती है. साथ ही विदेशी एजेंसियों को भी मदद करती है जो ड्रग्स के खिलाफ लड़ रही हैं.

ये एजेंसी तीन चीजों के लिए जानी जाती है: ड्रग्स की तस्करी रोकना, कानून को लागू करना, गुप्त सूचनाएं इकट्ठा करना. भारतीय संविधान का अनुच्छेद 47 भी यही कहता है कि देश में नशे के लिए इस्तेमाल होने वाली हानिकारक दवाओं को रोका जाना चाहिए. एनसीबी की अगुवाई यानि डायरेक्टर जनरल की पोस्ट पर ज्यादातर एक IPS या IRS अफसर होता है. साथ ही NCB में कई तरह के अफसर होते हैं. ये अफसर भारतीय राजस्व सेवा (IRS), भारतीय पुलिस सेवा (IPS) और दूसरे अर्धसैनिक बलों से आते हैं.

NCB को बनाने के पीछे ये दो अहम कानून हैं:

  • नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटाנס एक्ट, 1985 (NDPS Act 1985)
  • प्रिवेंशन ऑफ इलिसिट ट्रैफिकिंग इन नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटाנס एक्ट, 1988

NCB का मुख्य काम पूरे देश में नशीली दवाओं की तस्करी को रोकना है. इस काम में NCB अकेला नहीं है, बल्कि कई दूसरी सरकारी एजेंसियों के साथ मिलकर काम करता है. जैसे: कस्टम डिपार्टमेंट, जीएसटी, स्टेट पुलिस, स्टेट एक्साइज, सीबीआई, सीईआईबी.

तस्करी रोकने में सबसे आगे: डायरेक्टरेट ऑफ रेवेन्यू इंटेलिजेंस (DRI)

DRI भारत सरकार की एक खास खुफिया एजेंसी है जो वित्त मंत्रालय के राजस्व विभाग के अंतर्गत आती है. डीआरआई का काम ये सुनिश्चित करना है कि देश में कोई भी चीज छिपाकर या गलत तरीके से न लाई जाए. डीआरआई ड्रग्स, सोना, हीरे, इलेक्ट्रॉनिक सामान, विदेशी मुद्रा, फेक करेंसी जैसी चीजों की तस्करी रोकने का काम करती है.

डीआरआई में सीबीआईसी (Central Board of Indirect Taxes and Customs) के अफसर काम करते हैं. ये अफसर देश के अलग-अलग जोन में तैनात रहते हैं. इतना ही नहीं, विदेशों में भारतीय दूतावासों में भी DRI के अफसर तैनात रहते हैं. 

DRI की अगुवाई एक डायरेक्टर जनरल करता है जिसकी रैंक भारत सरकार के मुख्य आयुक्त के बराबर होती है. डीआरआई का दफ्तर नई दिल्ली में है, जिसे सात जोन में बांटा गया है. हर जोन की जिम्मेदारी एक अतिरिक्त डायरेक्टर जनरल (आयुक्त रैंक) संभालता है. इन जोन के अंदर कई और छोटे दफ्तर होते हैं. जैसे रीजनल यूनिट्स, सब-रीजनल यूनिट्स और इंटेलिजेंस सेल्स. इन छोटे दफ्तरों में अलग-अलग रैंक के अफसर काम करते हैं. जैसे एडिशनल डायरेक्टर, जॉइंट डायरेक्टर, डिप्टी डायरेक्टर, असिस्टेंट डायरेक्टर, सीनियर इंटेलिजेंस ऑफिसर और इंटेलिजेंस ऑफिसर.

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