चीन कर रहा है जवाहरलाल नेहरू के पंचशील सिद्धांत की तारीफ, इनमें ऐसा क्या था

पंचशील या शांति से एक दूसरे के अस्तित्व को स्वीकार करने के पांच सिद्धांत, भारत और चीन ने इस समझौते पर हस्ताक्षर 29 अप्रैल 1954 को किए थे। भारत की तरफ से इस समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू आगे आए थे जबकि चीन की तरफ से पहले प्रधानमंत्री चाऊ एन लाई ने हस्ताक्षर किए थे।

दरअसल, दूसरे विश्व युद्ध के बाद भारत जैसे कई देश गुलामी की जंजीरों को तोड़कर आगे बढ़ रहे थे। नये- नये आजाद हुए देशों के सामने अपनी-अपनी आजादी को स्थायित्व प्रदान करने और सीमाओं की सुरक्षा करने की चुनौती सामने थी। भारत और चीन भी अपने नए चेहरों और शासकों के साथ नई दुनिया में आगे बढ़ने के लिए तैयार थे। भारतीय प्रधानमंत्री नेहरू ने इस चुनौती से निपटने के लिए "पंचशील सिद्धांत" को अपनाया। चीन और भारत के रिश्ते शुरुआती दौर में खराब नहीं थे, लेकिन चीन की विस्तारवादी नीति का प्रभाव भारत पर भी पड़ने लगा था। लेकिन पीएम नेहरू ने विदेश नीति को स्थाई बनाने के लिए चीन से बेहतर संबंध की जरूरत को समझा। इसके चलते 1954 में भारत और चीन के बीच 8 वर्षों के लिए पंचशील समझौते पर सहमति बन गई। 

पंचशील सिद्धांतों के अंदर शामिल प्रमुख पांच सिद्धांत

1.प्रत्येक देश एक दूसरे की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का परस्पर सम्मान करेंगे। 

2.गैर- आक्रमण का सिद्धांत अपनाया गया। इसका मतलब कोई भी देश एक दूसरे पर आक्रमण नहीं   करेगा।

3.दोनों देश एक दूसरे के आंतरिक मामलों में किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं करेंगे।

4.दोनों देश एक-दूसरे के साथ समानता का व्यवहार करेंगे और परस्पर लाभ के सिद्धांत पर काम करेंगे।

5.शांति पूर्ण सहअस्तित्व का सिद्धांत इसमें सबसे महत्वपूर्ण माना गया जिसके अनुसार दोनों ही देश शांति  बनाए रखने का प्रयास करेंगे और एक दूसरे के अस्तित्व पर किसी भी प्रकार का संकट उत्पन्न नहीं करेंगे।

इस समझौते के बाद लगा कि जैसे भारत और चीन के बीच सब कुछ एक दम से ठीक हो गया है। चीन के प्रधानमंत्री झोउ एन लाई ने अपनी भारत यात्रा के दौरान इसे नए एशिया की शुरुआत का परिचायक बताया था। इस दौरे के दौरान ही "हिन्दी चीनी भाई-भाई" का नारा दिया गया और भारत ने अपने दोस्त चीन पर अत्याधिक भरोसा कर लिया।

चीन ने भारत के अक्साई चिन और अरुणाचल प्रदेश पर अपना अधिकार बताना शुरू कर दिया लेकिन तब भी रिश्ते इतने खराब नहीं हुए। अपनी विस्तारवादी नीति को लेकर चीन लगातार तिब्बत पर अत्याचार कर रहा था। जिसके कारण धार्मिक गुरू दलाई लामा ने भारत से शरण मांगी। भारत ने शरण तो दे दी लेकिन चीन से उसके कमजोर रिश्ते और भी ज्यादा कमजोर हो गए। पंचशील समझौते जो केवल आठ साल के लिए थे उनके खत्म होते-होते हालत यहां तक आ गए की चीन ने भारत पर तमाम आरोप लगाते हुए एक तरफा युद्ध शुरू कर  दिया।

1962 के युद्ध के लिए न तो भारत की सेना तैयार थी और न ही यहां की राजनीतिक सत्ता को यह उम्मीद थी कि चीन हमला कर देगा। इस युद्ध में न केवल भारत की हार हुई बल्कि एक बड़ा भू- भाग भी हमें चीन के हाथों गंवाना पड़ा जो की आज भी चीन के कब्जे में है।

भारत ने इन सिद्धांतों को बनाने में मुख्य भूमिका निभाई थी, इसलिए भारत इनका मजबूती के साथ पालन करता रहा लेकिन चीन इन को भारत की कमजोरी मानता रहा और अंत में जब परिस्थितियॉं उसे अपने पक्ष में दिखी तो भारत पर आक्रमण करके भारत की जमीन पर कब्जा कर लिया।

भारत के पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की इन सिद्धांतों में भारी श्रृद्धा थी। इन सिद्धांतों के महत्व को बताते हुए उन्होंने कहा था कि "यदि इन सिद्धांतों को सभी देश अपने आपसी संबंधों में शामिल कर लेते हैं, तो शायद ही विश्व में कोई ऐसा विवाद बचेगा, जो सुलझ नहीं सकता है।

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