क्या है वीगन डाइट, जो 6 महीने से फॉलो कर रहे CJI चंद्रचूड़ और उनकी पत्नी?

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud) ने हाल ही में एक कार्यक्रम में बताया कि वह ‘होलिस्टिक लाइफस्टाइल’ फॉलो करते हैं. इसी क्रम में वह और उनकी पत्नी, दोनों पिछले 6 महीने से ‘वीगन डाइट’ फॉलो कर रहे हैं. वीगन का मतलब शुद्ध शाकाहारी डाइट है, जिसमें डेयरी प्रोडक्ट्स भी शामिल नहीं होते. वीगन डाइट को फॉलो करने वाले जानवरों से मिलने वाला कोई भी खाद्य पदार्थ जैसे- मांस, मछली, दूध, दही, घी, पनीर, डेयरी प्रोडक्ट्स, शहद जैसी चीजें नहीं खाते. सिर्फ पेड़-पौधों से मिलने वाले फल, सब्जियां, अनाज, मेवे वगैरह खाते हैं.

क्या वेज और वीगन एक है?

आसान शब्दों में कहें तो वीगन डाइट सिर्फ और सिर्फ ऐसे खाद्य पदार्थों पर टिकी होती है जो या तो सीधे पौधों से मिलती है, या प्लांट बेस्ड फूड से बनाई जाती है. पर यहां समझने वाली बात यह है कि वीगन और वेज यानी शाकाहार एक नहीं है. वेजिटेरियन अथवा शाकाहारी लोग खानपान में पनीर, मक्खन, दूध, दही, शहद जैसी चीजें भी खाते हैं.

कैसे हुई इसकी शुरुआत?

वीगन लाइफस्टाइल का एकमात्र लक्ष्य होता है जानवरों के साथ किसी तरह का उत्पीड़न ना हो. वीगन या वेगनिज्म (Veganism), शब्द पहली बार 50 के दशक में चर्चित हुआ. ब्रिटिश नागरिक और एक्टिविस्ट डोनाल्ड वॉटसन (Donald Watson) ने शाकाहारियों के लिए ‘वीगन’ शब्द इजाद किया और बाकायदे वीगन सोसायटी बनाई. कुछ साल बाद ब्रिटेन से बाहर यूरोप के दूसरे देशों और अमेरिका वगैरह में वीगन डाइट प्रचलित हो गई और यह एक मूवमेंट जैसा बन गया. तमाम नामी रेस्टोरेंट और फूड ब्रांड्स ने अपने मेन्यू में वीगन उत्पाद शामिल करना शुरू कर दिया.

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प्राचीन भारत में जड़ें

atmos.earth की एक रिपोर्ट के मुताबिक ‘वीगन’ शब्द का भले ही पहली बार 50 के दशक में इस्तेमाल हुआ, इसके बावजूद इसकी जड़ें प्राचीन भारतीय और पश्चिम एशियाई संस्कृतियों तक जाती हैं. भारत की बात करें तो हिंदू साधु-संत, बौद्ध धर्म के अनुयायी और जैन मतावलंबी कई सदी पहले से ऐसा खानपान लेते रहे हैं, जो ‘वीगन’ के दायरे में आता है. इनके खानपान ने शेष एशिया के साथ-साथ यूरोप में भी शाकाहारी आहार को प्रभावित किया. यूरोप में शाकाहारी खाने का विचार प्राचीन यूनान आया. गणित की मशहूर थ्योरी ‘पाइथागोरस थ्योरम’ देने वाले पाइथागोरस ने शाकाहार को खूब प्रचारित किया.

पाइथागोरस ने कहा कि अपनी भूख शांत करने के लिए किसी जानवर की जान लेना मनुष्यता के खिलाफ है. उन दिनों शाकाहारी खानपान को ‘पाइथागोरियन डाइट’ कहा जाता था. वीगन मूवमेंट के शुरुआत फॉलोअर्स में अरब दार्शनिक और कवि अल-मौरी भी थे, जिन्होंने अपनी आत्मा की शुद्धता और जानवरों के कल्याण के लिए शाकाहार अपनाया.

वीगन लाइफस्टाइल भी

वीगन लोग सिर्फ खानपान में वीगन डाइट फॉलो नहीं करते बल्कि अब इसका दायरा लाइफस्टाइल तक पहुंच चुका है. वीगन फॉलोअर्स चमड़ा या उससे बना उत्पाद, ऊन, मोती जैसी चीजें भी इस्तेमाल नहीं करते हैं. उनका तर्क है, ये चीजें जानवरों को नुकसान पहुंचाकर हासिल की जाती हैं

हाल के सालों में वीगन लोगों की संख्या बहुत तेजी से बढ़ी है, अमेरिका में हुई एक रिसर्च के मुताबिक पिछले 3 सालों में वीगन का आंकड़ा 600 प्रतिशत बढ़ा है जबकि ब्रिटेन में 400% की बढ़ोतरी हुई है. वीगन एसोसिएशन के मुताबिक दुनिया भर में 95 करोड़ लोग वीगन डाइट फॉलो करते हैं. दुनिया में 1 नवंबर को ‘वर्ल्ड वीगन डे’ भी मनाया जाने लगा है.

वीगन डाइट का स्वास्थ्य पर क्या असर?

वीगन के पक्षकार दावा करते हैं कि इससे स्वास्थ्य अच्छा रहता है. BBC की एक रिपोर्ट के मुताबिक मांसाहारी, शाकाहारी और विगन लोगों पर हुई एक रिसर्च से पता लगता है कि सिर्फ प्लांट बेस्ड फूड्स पर निर्भर रहने वाले लोग यानी वीगन को कुछ स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है. विटामिन डी, विटामिन बी12 और आयोडीन की कमी हो सकती है. हालांकि वीगन को कैंसर जैसी बीमारी का खतरा कम हो जाता है.

पर्यावरण को कैसे लाभ?

वीगन लाइफस्टाइल का लाभ पर्यावरण को भी मिलता है. इससे ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कम किया जा सकता है. संयुक्त राष्ट्र की खाद्य एवं कृषि संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक अभी दुनिया भर में जिस तरीके से मीट का उत्पादन होता है, उससे पर्यावरण को खतरा है, ग्रीन हाउस गैसों का 14.5% उत्सर्जन पशु उत्पादन के जरिए होता है. यह आंकड़ा ट्रेन, जहाज, से निकलने वाले उत्सर्जन के बराबर है.

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