MYTHOLOGICAL STORY OF APSARA TILOTTAMA : इंद्र की सबसे सुंदर अप्सरा का ऐसे हुआ जन्म, किया यह कारनामा

इंद्र की अनेक अप्सराओं में एक अप्सरा का नाम तिलोत्तमा है। इनका नाम इनके अद्भुत सौंदर्य की वजह से है। इस अद्भुत सौंदर्य वाली अप्सरा के जन्म के पीछे बड़ी ही रोचक कथा है। पुराणों में मौजूद कथाओं में दो घटनाओं में जिक्र मिलता है कि क्यों तिलोत्तमा का जन्म हुआ। ये दोनों कहानियां एक जगह आकर मिलती हैं और वह लक्ष्य पूरा होता है जिसके लिए इसका जन्म हुआ था। ऐसे पड़ा यह नाम तिलोत्तमा स्वर्ग की परम सुंदर अप्सरा में से एक थी। हमारे पुराणों में तिलोत्तमा नाम की एक अप्सरा का कई स्थानों पर उल्लेख मिलता है।

शास्त्रों में तिलोत्तमा के बारे में कहा जाता है कि तिलोत्तमा की रचना के लिए ब्रह्माजी ने तिल-तिल भर संसार की सुंदरता को इसमें समाहित किया था, इसीलिए इसका नाम 'तिलोत्तमा' पड़ा। कहा यह भी जाता है कि ब्रह्मा के हवनकुंड से इसका जन्म हुआ। अष्टावक्र से मिला शाप दुर्वासा ऋषि के शाप से यही तिलोत्तमा बाण की पुत्री हुई थी। माघ मास में यह सौर गण के साथ सूर्य के रथ पर रहती है। दूसरी मान्यता अनुसार तिलोत्तमा अश्विन मास (वायुपुराण के अनुसार माघ) में अन्य सात सौरगण के साथ सूर्य के रथ की मालकिन के रूप में रहती है। अष्टावक्र द्वारा भी इसे शाप मिला था। एक अप्सरा के कई संबंध, सौ से अधिक बच्चों की बनी मां ब्रह्माजी की मुश्किल बने दो असुर भाई हिरण्यकश्यप के वंश में निकुंभ नामक एक असुर उत्पन्न हुआ था, जिसके सुन्द, उपसुन्द नामक दो पुत्र हुए। विश्वविजय की इच्छा से सुन्द और उपसुन्द विंध्याचल पर्वत पर तप करने लगे जिससे प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने वर मांगने को कहा। तब इन दोनों ने अमरत्व का वरदान मांगा लेकिन ब्रह्माजी ने ऐसा वरदान देने से मना कर दिया।ऐसे पड़ा यह नाम

तिलोत्तमा स्वर्ग की परम सुंदर अप्सरा में से एक थी। हमारे पुराणों में तिलोत्तमा नाम की एक अप्सरा का कई स्थानों पर उल्लेख मिलता है। शास्त्रों में तिलोत्तमा के बारे में कहा जाता है कि तिलोत्तमा की रचना के लिए ब्रह्माजी ने तिल-तिल भर संसार की सुंदरता को इसमें समाहित किया था, इसीलिए इसका नाम ‘तिलोत्तमा’ पड़ा। कहा यह भी जाता है कि ब्रह्मा के हवनकुंड से इसका जन्म हुआ।

अष्टावक्र से मिला शाप

दुर्वासा ऋषि के शाप से यही तिलोत्तमा बाण की पुत्री हुई थी। माघ मास में यह सौर गण के साथ सूर्य के रथ पर रहती है। दूसरी मान्यता अनुसार तिलोत्तमा अश्विन मास (वायुपुराण के अनुसार माघ) में अन्य सात सौरगण के साथ सूर्य के रथ की मालकिन के रूप में रहती है। अष्टावक्र द्वारा भी इसे शाप मिला था।

ब्रह्माजी की मुश्किल बने दो असुर भाई

हिरण्यकश्यप के वंश में निकुंभ नामक एक असुर उत्पन्न हुआ था, जिसके सुन्द, उपसुन्द नामक दो पुत्र हुए। विश्वविजय की इच्छा से सुन्द और उपसुन्द विंध्याचल पर्वत पर तप करने लगे जिससे प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने वर मांगने को कहा। तब इन दोनों ने अमरत्व का वरदान मांगा लेकिन ब्रह्माजी ने ऐसा वरदान देने से मना कर दिया।

विश्वकर्मा भगवान ने की रचना

दोनों भाइयों ने सोचा कि उनमें तो आपसी प्रेम बहुत अधिक है और वे कभी भी आपस में नहीं लड़ सकते। इसीलिए उन्होंने वरदान मांगा कि एक-दूसरे को छोड़कर त्रिलोक में उन्हें किसी से मृत्यु का भय न हो। वरदान प्राप्त होने के बाद सुन्द और उपसुन्द के अत्याचारों से संसार त्रस्त हो उठा। तब इन दोनों भाइयों के अन्याय से मुक्ति दिलाने के लिए ही ब्रह्माजी ने विश्वकर्मा जी से एक दिव्य सुंदरी की रचना के लिए निवेदन किया।

दो दैत्य भाइयों के वध के लिए हुआ जन्म

विश्वकर्मा जी ने ने तीनों लोकों की तिल-तिल भर सुंदरता लेकर एक अवर्णनीय सौंदर्य प्रतिमा स्वरूप इस सुंदरी का निर्माण किया। सुन्द-उपसुन्द तिलोत्तमा के रूप सौंदर्य को देखते ही उसे पाने के लिए आपस में लड़ने लगे और एक-दूसरे के हाथों मारे गए।

ऐसे बनी भगवान श्रीकृष्ण की बहू

सौंदर्य के अभिमान में एक बार तिलोत्तमा ने महर्षि विश्वामित्र का अपमान कर दिया। इससे क्रोधित होकर ऋषि ने इन्हें असुर बन जाने का शाप दिया। इस शाप से यह वाणासुर की पुत्री उषा हुई। उषा भगावन श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न को पसंद करने लगी और एक रात उन्हें सोते हुए से उठाकर अपने महल में ले आई। बाद में प्रद्युम्न के साथ इनका विवाह हुआ।

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