ठेठरी हो, चौसेला हो, देहरोरी हो या फिर अइरसा...छत्तीसगढ़ के किसी भी व्यंजन का नाम लीजिए, ज्यादातर की बुनियाद एक ही है-चावल। राज्य की सामाजिक संरचना का भी यही हाल है। करीब 52 फीसदी पिछड़े, 30 फीसदी अनुसूचित जनजाति और 12 फीसदी अनुसूचित जाति वाले इस राज्य में हर सियासी चर्चा जातीय गुणा गणित पर आकर टिक जाती है। भाजपा बेशक राष्ट्रवाद, राम मंदिर और अनुच्छेद-370 का जोर-शोर से प्रचार कर रही हो और कांग्रेस न्याय गारंटी को लोगों तक पहुंचाने के लिए पूरा जोर लगाए हो, मगर दोनों ही दलों को पता है कि अंतत: जीत उसी के हाथ लगेगी, जो जातीय समीकरणों को अपने हक में साधने में सफल रहेगा। छत्तीसगढ़ में तीसरे चरण में दुर्ग के साथ-साथ जिन छह लोकसभा क्षेत्रों रायपुर, सरगुजा, कोरबा, बिलासपुर, रायगढ़ और जांजगीर-चांपा में वोट पड़ने जा रहे हैं, वहां जातीय संतुलन पर जोर राज्य के दूसरे क्षेत्रों से कहीं ज्यादा है। किसी भी दल के नेता से बात करिए, वह राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर चर्चा के बजाय गोंड, बैगा, मुरिया, हलवा, भैना, भारिया व नगेशिया जैसे समुदायों का मंत्र की तरह जाप करता नजर आता है।
रायपुर एयरपोर्ट से बाहर निकलकर शहर की ओर बढ़ते हुए चुनावी माहौल पर सहज भाव से पूछे गए सवाल के जवाब में हमारे ड्राइवर कृष्णा भारतीय झट से बोल पड़ते हैं-और कौन जीतेगा रायपुर से? भाजपा के ब्रजमोहन का जीतना तय है। इससे पहले कि दूसरा सवाल करें, वह सफाई- सी देते हुए कहते हैं- ब्रजमोहन ने दूसरों से ज्यादा अपना और अपनों का भला किया है। आज से नहीं, न जाने कितने सालों से। मगर उन्होंने सबको साध रखा है। हर बिरादरी को। यहां उन्हें कोई नहीं हरा सकता। रायपुर में कई जगह चर्चा का विषय ब्रजमोहन अग्रवाल ही हैं। राजधानी की यह हवा सरगुजा व कोरबा जैसे इलाकों तक पहुंचते-पहुंचते और तेज होने लगती है। हाल ही में बनी भाजपा की प्रदेश सरकार को लेकर लोगों में कोई खास नाराजगी देखने को नहीं मिलती। बल्कि, नई सरकार की योजनाओं के प्रति लोगों में प्रशंसा का भाव है।
सरगुजा में सामाजिक कार्यकर्ता राकेश साव कहते हैं-सामाजिक समीकरणों को भाजपा ने जिस कुशलता से साधा है, छोटी-छोटी जातियों को अपने साथ जोड़ा है, उसका फायदा मिलता दिख रहा है। कोशिश कांग्रेस ने भी बहुत की, लेकिन वह जातियों की कीमियागिरी उतनी महारथ के साथ नहीं कर पाई, जितने की जरूरत थी। इस इलाके में जीत का रसायन इसी जातीय कीमियागिरी से तैयार होता है। आपको मीठा लगे या कड़वा, यही सच है।
छह सीटों पर लड़ाई...जाति के बीच बेरोजगारी का मुद्दा रायपुर
सामान्य सीट पर भी भारी
राज्य में जातीय संतुलन की कितनी अहमियत है, इसे समझने के लिए कोरबा लोकसभा क्षेत्र कई मायनों में प्रतिनिधिक उदाहरण है। 2008 के परिसीमन से अस्तित्व में आई इस सामान्य सीट पर पिछले तीन चुनाव से कोई भी सवर्ण प्रत्याशी नहीं जीता है। 2009 में भाजपा की करुणा शुक्ला कांग्रेस के पिछले समुदाय से आने वाले डॉ. चरणदास महंत से हार गईं, तो 2014 में भाजपा ने पिछड़े समुदाय के वंशीलाल महतो को टिकट देकर बाजी पलट दी। यहां तक कि 2019 की मोदी लहर में भाजपा के सवर्ण प्रत्याशी ज्योतिनंद दुबे, चरणदास महंत की पत्नी ज्योत्सना महंत के आगे खेत रहे। हालांकि इस बार भाजपा ने फिर सामान्य वर्ग की सरोज पांडे को टिकट देकर बड़ा जोखिम मोल लिया है।