नईदुनिया प्रतिनिधि, भिंड। शहर के गौरी सरोवर में एक बार फिर मछलियां मरना शुरू हो गई हैं। पानी में मरी हुई मछलियां तैर रही हैं। सरोवर में तिलापिया प्रजाति की मछलियां हैं। मत्स्य विभाग के अनुसार सरोवर में मछलियों के मरने का सबसे बड़ा कारण मछलियों की संख्या अत्यधिक होना है। मछलियों की संख्या कम कराए जाने को लेकर कई बार विभाग के द्वारा प्रस्ताव बनाकर नपा को भेजा जा चुका है। लेकिन मछलियों के मरने तक यह मामला हर बार कागजी पत्राचार तक सिमटकर रह जाता है, लेकिन इसके बावजूद भी कोई कार्ययोजना तैयार नहीं होती।
बारिश का मौसम मछलियों का प्रजनन काल कहा जाता है। ऐसे में अचानक गौरी सरोवर में रोज मछलियों की मौत हो रही है। सरोवर में नाले-नालियों का गंदा पानी पहुंचता है। वहीं दूसरी तरफ आक्सीजन की कमी आ जाती है। सरोवर में जितनी मछलियां होना चाहिए, उससे काफी ज्यादा संख्या मछलियों की है। इससे कम आक्सीजन के पानी से मछलियों की मौत होने लगती है।
सरोवर में तिलापिया मुजांबिका प्रजाति की मछलियां हैं। इस प्रजाति की मछली की संख्या सबसे ज्यादा तेजी से बढ़ती है। मतस्य जानकार कहते हैं तिलापिया मुजांबिका प्रजाति की मछली अंडों को मुंह में रखे रहती है, जब बच्चे निकलते हैं तभी मुंह से निकालती है। ऐसे में इस प्रजाति की मछली के बच्चे शत-प्रतिशत जीवित रहते हैं। लाखों की संख्या में बच्चे होने से सरोवर में मछलियों की जनसंख्या काफी तेजी से बढ़ती है। ऐसे में कम आक्सीजन का पानी इन मछलियों के लिए काल बनता है।
मछलियों के मरने की असली वजह
जिले में मत्स्याखेट समिति, फिर भी प्रशासन नहीं लेता मदद
बतादें कि जिले में बकायता 51 सदस्यीय मत्स्याखेट समिति है। जोकि वर्तमान में गोहद के बेसली जलाशय में काम करती है। इस समिति का उपयोग तालाब या नदी से मछलियां पकड़वाकर बाहर निकलवाने में किया जाता है। समिति में जिलेभर के मछुआरे काे शामिल किया जाता है। लेकिन इस समिति का गोहद के अलावा कहीं भी उपयोग नहीं किया जाता। अगर भिंड नगर पालिका चाहे तो सरोवर से मछलियों की संख्या कम कराए जाने के लिए इस समिति की मदद ले सकती है।
2024-07-05T07:41:35Z dg43tfdfdgfdइनका कहना है
गौरी सरोवर में साल में दो बार मछलियों के मरने का मामला सामने आता है। पिछले तीन साल से मत्स्य विभाग के द्वारा सरोवर में मछलियों की संख्या कम कराए जाने का प्रस्ताव बनाकर भिंड नपा को भेजा जा रहा है। सरोवर से अगर मछलियों की संख्या कम करा दी जाए तो मछियों की मरने की समस्या का निराकरण हो सकता है।
एसएस धाकड़, मत्स्य निरीक्षक।