मध्य प्रदेश के कूनो नैशनल पार्क में मादा चीता ज्वाला के एक-एक कर तीन शावकों की मौत ने जहां वन्य जीव प्रेमियों को मायूस किया है, वहीं साउथ अफ्रीका से चीते लाकर भारत के जंगलों को आबाद करने के इस प्रॉजेक्ट को सवालों के घेरे में भी ला दिया है। इस महत्वाकांक्षी प्रॉजेक्ट के तहत नामीबिया से 20 चीते लाए गए थे और यहां आने के बाद 27 मार्च को ज्वाला ने चार शावकों को जन्म दिया था। लेकिन पिछले छह महीने में पहले तीन चीतों की मौत हुई और फिर तीन शावक भी जीवित नहीं रह सके। हालांकि विशेषज्ञों के मुताबिक, ऐसे प्रॉजेक्टों का मूल्यांकन करते हुए जल्दबाजी में निष्कर्ष निकालने से बचा जाना चाहिए। न तो एकाध चीतों का जन्म इन प्रॉजेक्टों की सफलता का सबूत होता है और न कुछ चीतों की मौत इनकी नाकामी का ऐलान। इसके बावजूद अगर इन मौतों ने जीव विज्ञानियों के बीच चिंता पैदा की है तो उसकी वजह इन मौतों के लिए जिम्मेदार बताए जा रहे कारकों में देखी जा रही है। मध्य प्रदेश वन विभाग के अधिकारियों ने मंगलवार को हुई इन मौतों का कारण गर्मी, कुपोषण और उपचार के प्रयासों पर इनका कोई रेस्पॉन्स न देना बताया है। क्या इसका मतलब यह है कि इन चीतों और शावकों के लिए यहां का मौसम और परिवेश अपेक्षा से कहीं ज्यादा प्रतिकूल साबित हो रहा है? जानकारों के मुताबिक, आम तौर पर संरक्षित क्षेत्र में चीते के शावकों का सरवाइवल रेट काफी अच्छा होता है।
इस उम्र में शावकों के लिए सबसे पौष्टिक आहार मां का दूध होता है। करीब दो महीने की उम्र के ये शावक अगर कमजोर थे तो क्या इसका मतलब यह है कि उन्हें मां का पर्याप्त दूध नहीं मिल रहा था और अगर यह सच है तो क्या इसके पीछे कारण यह है कि मां में पर्याप्त दूध बन ही नहीं रहा था? इन सवालों के प्रामाणिक जवाब मिलने इसलिए भी मुश्किल हैं क्योंकि यह स्पष्ट नहीं है कि इन शावकों और मादा चीता पर कैसे और कितनी नजर रखी जा रही थी। विशेषज्ञों के मुताबिक, चीता शावकों के पालन-पोषण में इंसानी दखल एक सीमा से ज्यादा नहीं होना चाहिए क्योंकि इससे इनकी शिकार करने की क्षमता प्रभावित होती है। चूंकि इन्हें वन्य जीव के रूप में विकसित होना है, इसलिए इन्हें प्रतिकूलताओं से खुद जूझना और उनसे पार पाना सीखने देना बेहतर माना जाता है। बहरहाल, यह प्रॉजेक्ट शुरू हो चुका है, इसलिए जरूरी है कि हर छोटी-मोटी बात पर इसे कामयाब घोषित करने या नाकाम करार देने की प्रवृत्ति से बचा जाए। दीर्घकालिक नजरिया अपनाते हुए इस प्रयोग को सही ढंग से आगे बढ़ाया जाए तो इसकी कामयाबी ही नहीं, नाकामी से जुड़े पहलुओं के भी ऐसे महत्वपूर्ण सबक हो सकते हैं जो आगे दुनिया भर के जीव विज्ञानियों का मार्गदर्शन करें।
2023-05-27T00:05:31Z dg43tfdfdgfd