बरेली: वूमेन में बढ़ रहा है अस्थमा

बरेली (ब्यूरो)।

कोई भी जगह पॉल्यूशन की गिरफ्त से बची नहीं है. पॉल्यूशन ने लोगों को कई तरह की बीमारियों का शिकार बना दिया है. इसमें से एक अस्थमा है. बच्चे हो या बड़ी हर कोई इसकी पकड़ में हैैं. जीएएन की स्टैडी के मुताबिक दुनियाभर में अस्थमा से होने वाली 46 प्रतिशत मौत अकेले भारत में होती हैैं. वहीं अस्थमा सबसे ज्यादा महिलाओं को होती हैैं.

महिलाओं में अस्थमा ज्यादा

अस्थमा की प्रॉब्लम पुरूषों से अधिक महिलाओं में देखी जाती है. वहीं जिला अस्पताल में अस्थमा के केस फीमेल में ज्यादा आते हैैं. फीमेल में अस्थमा होने की सबसे बड़ी वजह है. महिलाओं में प्रजनन हार्मोन. फीमेल में अस्थमा की बात होती है तो उसमें सबसे पहले माहवरी, गर्भधारण और मेनोपॉज सबसे ज्यादा प्रभावित होता है. वहीं जिला अस्पताल के चेस्ट वार्ड में आने वाले पेशेंट्स में 15-20 पेशेंट अस्थमा के होते हैैं.

इंहेल मेडिकेशन इज बेस्ट मेडिसिन

ग्लोबल अस्थमा नेटवर्क की एक स्टैडी के मुताबिक बच्चों में अस्थमा की काफी दिक्कत देखी जा रही है. स्टैडी में 6 से सात साल के 20,084 बच्चों को शामिल किया गया और 25,887, 13 से 14 साल के बच्चों को शामिल किया गया. इसमें भारत के दो राज्यों के बच्चे शामिल किए गए. इस स्टैडी में देखा गया कि 82 प्रतिशत बच्चों को अस्थमा से डायग्नोस किया जा रहा है. वहीं लगभग 70 बच्चे अभी बिना किसी ट्रीटमेंट के रह रहे हैैं.

खुद न बने डॉक्टर

डॉ. रजत अग्रवाल ने बताया कि लोग खुद ही डॉक्टर बन जाते हैैं. गूगल और मेडिकल स्टोर पर जाकर अपने आप ही दवाइयां लेते हैैं. वहीं जब बीमारी आउट ऑफ कंट्रोल हो जाती है, तब डॉक्टर को याद करते हैं.

किसी भी उम्र में हो सकता है अस्थमा

डॉक्टर्स के मुताबिक सांस लेने में अगर किसी को परेशानी होती तो एक बार उसे अस्थमा की जांच जरूर कर लेना चाहिए. कमजोर इम्युुनिटी की वजह से बॉडी में एलर्जी काफी तेजी से अपना घर बना लेती हैैं. वहीं अस्थमा होना किसी एज लिमिट पर डिपेंड नहीं करता है. यह किसी भी एज में हो सकता है. अमूमन इसकी शुरूआत बचपन से ही हो जाती है, लेकिन कई बार बढ़ती उम्र के साथ बॉडी में डिसीज के साथ लडऩे की फाइटिंग स्पीरिट बढ़ जाती है और इस तरह की प्रॉब्लम से ओवर कम कर लेती है. कुछ लोगों की इम्युनिटी वीक होती हैैं ऐसे में बीमारियां उन्हें अपना शिकार बना लेती हैैं.

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