प्रयागराज (ब्यूरो)। साइबर ठग पुलिस से एक कदम आगे हैं. जिसका नतीजा है कि साइबर ठगी के जितने मामले सामने आते हैं, उतने साइबर ठग पकड़े नहीं जाते हैं. ऐसे में साइबर ठगों को ट्रेस कर पाना मुश्किल हो जा रहा है. साइबर ठगों को पता है कि उन्हें मोबाइल नंबर के जरिए ही ट्रेस किया जा सकता है. ऐसे में साइबर ठग जिन नंबरों का इस्तेमाल करते हैं, वह सिम साइबर ठग कभी अपने नाम से नहीं लेते हैं. ऐसे सिम इतनी दूर दराज से लिए जाते हैं कि उनकी डिटेल से साइबर ठगों को पकडऩा मुश्किल हो जाता है. फिलहाल, पुलिस ने साइबर ठगों की कमर तोडऩे के लिए उन मोबाइल नंबरों को बंद कराना शुरू कर दिया है, जिनके जरिए साइबर ठगी की घटनाओं को अंजाम दिया जाता है. प्रयागराज की साइबर सेल ने अब तक करीब साढ़े छह हजार मोबाइल नंबर बंद कराए हैं, जिनके जरिए साइबर ठगी की गई है.
6704 नंबर से की गई साइबर ठगी
प्रयागराज जिले में 6704 मोबाइल नंबर से साइबर ठगी की गई है. साइबर सेल में पहुंचने वाली हर शिकायत के साथ कोई न कोई अंजान मोबाइल नंबर की बात रहती है. साइबर सेल ने लिस्टिंग की तो पता चला कि प्रयागराज में पिछले डेढ़ साल में साइबर ठगी में 6704 मोबाइल नंबर इस्तेमाल किए गए हैं. जिस पर साइबर सेल ने इन मोबाइल नंबरों को ट्रेस करना शुरू किया. पता चला कि इन नंबरों की लोकेशन जहां पर है, वहां से इन नंबरों को नहीं लिया गया है.
पश्चिम बंगाल, उड़ीसा के नंबर
साइबर सेल ने नंबरों की लिस्टिंग के बाद उनकी डिटेल निकाली. पता चला कि लिस्टिंग में शामिल किए गए सत्तर फीसदी नंबर पश्चिम बंगाल और उड़ीसा से लिए गए हैं. जबकि उनकी लोकेशन झारखंड, बिहार, दिल्ली में मिली. साइबर सेल के मुताबिक हजार, पांच सौ रुपये में पश्चिम बंगाल और उड़ीसा से मोबाइल नंबर खरीद कर उनका इस्तेमाल साइबर ठगी में किया जाता है. सिम बेचने वालों को पता नहीं रहता है कि उनसे लिए जा रहे सिम का इस्तेमाल साइबर ठगी में किया जाएगा. चूंकि नंबर पश्चिम बंगाल और उड़ीसा के इतने दूर दराज एरिया के होते हैं कि उनक नंबरों को एलॉट कराने वाले शख्स तक पहुंच पाना मुश्किल हो जाता है.
दोबारा इस्तेमाल नहीं करते सिम
साइबर ठग इतने शातिर हैं कि वह साइबर ठगी के लिए केवल एक बार ही मोबाइल नंबर का इस्तेमाल करते हैं. इसके बाद दोबारा जल्दी उस मोबाइल नंबर का इस्तेमाल नहीं करते हैं. साइबर ठग ठगी करने के बाद या ठगी नहीं हो पाने की स्थिति में भी मोबाइल से सिम निकाल देते हैं. जिससे उनकी लोकेशन मिल पाना मुश्किल हो जाता है. ये बात दीगर है कि आईएमआई नंबर ट्रेस हो जाने पर पता चल जाता है कि उसी मोबाइल से दूसरा सिम इस्तेमाल किया जा रहा है. ऐसे में मोबाइल के जरिए लोकेशन मिल जाती है, मगर जब तक साइबर पुलिस ऐसे साइबर ठगों को ट्रेस करने का इंतजाम बनाती है, जब तक साइबर ठग अपना ठिकाना बदल देते हैं.
फर्जी आईडी पर खरीदे जाते हैं नंबर
साइबर ठग अक्सर फर्जी आईडी पर भी सिम खरीद लेते हैं. कई ऐसे मामले सामने आए हैं जिसमें साइबर ठगों ने फर्जी आधार कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस बनवा कर उस आईडी पर सिम ले लिया. इसके बाद उस नंबर से साइबर ठगी की. फिर उस सिम को हटा दिया. ऐसे नंबरों की सही डिटेल मिल पाना मुश्किल हो जाता है.
सेफ जोन है पश्चिम बंगाल, उड़ीसा
साइबर सेल प्रभारी विनोद यादव बताते हैं कि पश्चिम बंगाल और उड़ीसा साइबर ठगों के लिए सिम लेने का सेफ जोन है. इन दोनों प्रदेश के दूर दराज के जिलों से सिम का बड़े पैमाने पर अवैध कारोबार किया जा रहा है. जिसके जरिए साइबर ठगी की घटनाओं को अंजाम दिया जाता है.
साइबर सेल ने 6704 मोबाइल सिम की लिस्टिंग की है. इन नंबरों के जरिए साइबर ठगी की गई है. इन सभी नंबरों को बंद कराया जा चुका है. अभी और नंबरों की लिस्ट तैयार की जा रही है. उन्हें भी बंद कराया जाएगा.
सतीश चंद्र, एडीसीपी क्राइम
2024-07-03T19:29:22Z dg43tfdfdgfd