जज की आलोचना क्यों नहीं कर सकते, वो सुपर ह्यूमन तो नहीं; HC ने क्यों कहा ऐसा?

Punjab and Haryana High Court:  पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने कहा है कि अदालत के फैसले की स्वस्थ आलोचना अवमानना नहीं कहा जा सकता है। इसके साथ ही कोर्ट ने टिप्पणी की कि जज सुपर ह्यूमन नहीं हैं, उनसे भी गलतियां हो सकती हैं इसलिए लोकतंत्र में संवाद और बहस होनी चाहिए। जस्टिस अनुपिंदर सिंह ग्रेवाल और जस्टिस कीर्ति सिंह की खंडपीठ ने कहा कि ज्यूडिशियल सिस्टम में सुझावों का हमेशा स्वागत किया जाना चाहिए।

बार एंड बेंच की एक रिपोर्ट के मुताबिक, खंडपीठ ने कहा, “अदालत के फैसले पब्लिक डोमेन में हैं और ये हर तरह की चर्चा और आलोचनात्मक विश्लेषण के लिए खुले हैं। जज सुपर ह्यूमन नहीं हैं, उनसे भी गलतियां हो सकती हैं।” 

हाई कोर्ट की यह टिप्पणी अवमानना के एक केस की सुनवाई के दौरान आई है। इसके साथ ही कोर्ट ने सुरजीत सिंह नाम के आरोपी के खिलाफ चलाए जा रहे आपराधिक अवमानना की कार्यवाही को रद्द कर दिया। सिंह ने तर्क दिया था कि निचली अदालत के जज द्वारा बार-बार स्थगन का आदेश दिए जाने से उसका उत्पीड़न हो रहा है। कोर्ट ने इसे अवमानना करार दिया था और उसके खिलाफ क्रिमिनल केस चलाने का आदेश दिया था।

याचिकाकर्ता सुरजीत सिंह ने अपने मामले के निपटारे में हो रही देरी से दुखी होकर हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था और अपनी अर्जी में  निचली अदालत के जज को जल्द फैसला देने के लिए निर्देश देने की मांग की थी। हाई कोर्ट में दायर याचिका में सिंह ने कहा था कि मजिस्ट्रेट मामले में फैसला करने के इच्छुक नहीं हैं, और इस वजह से उन्हें रेशान किया गया है।

हाई कोर्ट की सिंगल बेंच ने स्थगन की मांग पर सिंह के वकील को कारण बताओ नोटिस जारी किया था। नवंबर 2023 में सिंगल बेंच ने आपराधिक अवमानना ​​कार्यवाही शुरू करने का आदेश दिया था लेकिन अब डबल बेंच ने उसे रद्द कर दिया है और कहा है कि जज सुपर ह्यूमन नहीं हैं, उनसे भी गलती हो सकती है।

2024-07-04T09:48:04Z dg43tfdfdgfd