UK ELECTION RESULTS 2024: कहां चूके ऋषि सुनक? कंजर्वेटिव पार्टी की ऐतिहासिक हार की 7 वजहें

ब्रिटेन में गुरुवार को डाले गए वोटों की गिनती जारी है. हालांकि चुनाव नतीजों ने किसी को भी हैरान नहीं किया है. तमाम ओपनियन और एग्जिट पोल के मुताबिक लेबर पार्टी ने प्रचंड जीत हासिल की है तो कंजर्वेटिव पार्टी को करारी हार का सामना पड़ा है. लेबर पार्टी की आंधी में कई दिग्गज टोरी धराशायी हो गए जिनमें एक नाम पूर्व पीएम लिज ट्रस का भी है.

खबर लिखे जाने तक 650 में से लेबर पार्टी 410 सीटें जीत चुकी है जबकि उसे 210 सीटों का फायदा मिला है. वहीं कंजर्वेटिव ने अब तक सिर्फ 119 सीट जीती हैं और उसे 248 सीटों का नुकसान हुआ है. ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि कंजर्वेटिव पार्टी की इतनी बड़ी हार की वजहें क्या हैं.

वोटिंग ट्रेंड

वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट के अनुसार, कंजर्वेटिव पार्टी की हार का एक प्रमुख कारण उसका सत्ता में बने रहना और देश में वोटिंग ड्रेंड रहा है. कोई भी ब्रिटिश राजनीतिक दल लगातार पांचवीं बार सत्ता में नहीं आया है. ब्रिटिश राजनीति जैसे एक फिक्स टाइम लिमिट में चलती है. जिसमें दो मुख्य दलों को आम तौर पर विपक्ष में बैठने से पहले शसान करने का 10 से 15 साल तक का समय मिलता है. 1979 से 1997 तक कंजर्वेटिव ने शासन किया, 1997 से 2010 तक लेबर ने और उसके बाद फिर कंजर्वेटिव. यानी चुनाव नतीजें यूके के पुराने ट्रेंड के मुताबि ही आए हैं.

करना पड़ा एक के बाद एक चुनौतियों का समाना

2010 में सत्ता संभालने के बाद से कंजर्वेटिव को एक के बाद एक चुनौतियों का सामना करना पड़ा है. सबसे पहले ग्लोबल वित्तीय संकट का नतीजा सामने आया, जिसने ब्रिटेन के कर्ज को बढ़ा दिया और बजट को संतुलित करने के लिए टोरीज को कई सालों तक खर्जों पर लगाम लगानी पड़ी. इसके बाद उन्होंने ब्रिटेन को यूरोपीय संघ से बाहर कर दिया, ब्रिटन पश्चिमी यूरोप में सबसे घातक COVID-19 प्रकोपों ​​में से एक से जूझा. परेशानियां यही नहीं खत्म हुए रूस ने जब यूक्रेन पर हमला किया तो देश ने मुद्रास्फीति में उछाल देखा.

भ्रष्टाचार के आरोप

इसके अलावा, पार्टी भ्रष्टाचार के मोर्च में पर जूझती नजर आई. इसमें सरकारी कार्यालयों में लॉकडाउन तोड़ने वाली पार्टियां भी शामिल हैं. घोटालों के कारण पूर्व प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन को पद से हटना पड़ा और अंततः संसद से भी बाहर होना पड़ा, क्योंकि उन पर सांसदों से झूठ बोलने का आरोप लगा था.  उनकी उत्तराधिकारी लिज ट्रस सिर्फ 45 दिन ही सत्ता में रहीं, जबकि उनकी आर्थिक नीतियों ने अर्थव्यवस्था को तहस-नहस कर दिया था.

आर्थिक मोर्चे पर नाकामी

ब्रिटेन उच्च मुद्रास्फीति और धीमी आर्थिक वृद्धि से जूझ रहा है, जिसके कारण अधिकांश लोग आर्थिक परेशानियां महसूस कर रहे हैं. कंजर्वेटिव मुद्रास्फीति को कंट्रोल करने में सफल रहे, जो अक्टूबर 2022 में 11.1% के शिखर पर पहुंचने के बाद मई तक 2% तक धीमी हो गई, लेकिन विकास की रफ्तार सुस्त बना रही. इससे सरकार की आर्थिक नीतियों पर सवाल उठ रहे हैं.

इमिग्रेशन के मुद्दे पर नाकामी

हाल के वर्षों में हजारों शरणार्थी और आर्थिक प्रवासियों ने कमजोर हवा वाली नावों में सवार होकर इंग्लिश चैनल पार किया है. इसकी वजह से सरकार को आलोचना झेलनी पड़ रही है कि उसने ब्रिटेन की सीमाओं पर नियंत्रण खो दिया है. इमिग्रेशन को रोकने के लिए कंज़र्वेटिवों की प्रमुख नीति इनमें से कुछ प्रवासियों को रवांडा निर्वासित करने की योजना है. आलोचकों का कहना है कि यह योजना अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन करती है, अमानवीय है और यह युद्ध, अशांति और अकाल से भाग रहे लोगों को रोकने के लिए कुछ नहीं करेगी.

हेल्थ सर्विस की खस्ता हालत

ब्रिटेन की राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा, जो सभी को निःशुल्क स्वास्थ्य सेवा प्रदान करती है, दंत चिकित्सा से लेकर कैंसर उपचार तक हर चीज़ के लिए लंबी वेटिंग लिस्ट से जूझ रही है. समाचार-पत्र गंभीर रूप से बीमार रोगियों के बारे में समाचारों से भरे पड़े हैं, जिन्हें एम्बुलेंस के लिए घंटों इंतज़ार करना पड़ता है, फिर अस्पताल के बिस्तर के लिए और भी लंबा इंतज़ार करना पड़ता है.

पर्यावरण का मुद्दा

सुनक ने पर्यावरण से जुड़ी कई प्रतिबद्धताओं से पीछे हटते हुए गैसोलीन और डीजल से चलने वाले यात्री वाहनों की बिक्री बंद करने और उत्तरी सागर में नए तेल खनन को अधिकृत करने की समयसीमा को आगे बढ़ा दिया. आलोचकों का कहना है कि ये ऐसे समय में गलत नीतियां हैं जब दुनिया जलवायु परिवर्तन से निपटने की कोशिश कर रही है.

2024-07-05T07:41:51Z dg43tfdfdgfd