LS POLLS 2024: ठाणे में इस 'दरबार' से तय होती है सियासत, शिंदे और उद्धव की शिवसेना भी टेकती हैं माथा

यह जो घर आपको इस तस्वीर में दिख रहा है समूचे ठाणे की सियासत का केंद्र बिंदु यही है। कहा यही जाता है कि ठाणे में अगर सियासत करनी है, तो इस दरबार में माथा तो टेकना ही होगा। पार्षद का चुनाव हो या विधानसभा का या फिर लोकसभा का। चुनाव लड़ने वाला ठाणे के तेंबी नाका इलाके में स्थित इस दरबार में जाता ही जाता है। अब जब लोकसभा का चुनाव चल रहा है, तो उद्धव ठाकरे की शिवसेना और एकनाथ शिंदे की शिवसेना अलग-अलग जरूर हैं, लेकिन इस दरबार में माथा टेकने दोनों पार्टियों के नेता पहुंच रहे हैं। दरअसल यह घर ठाणे के बालासाहेब ठाकरे कहे जाने वाले आनंद दिघे का है। आनंद दिघे बालासाहेब ठाकरे के सबसे करीबियों में गिने जाते थे। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के सियासी गुरु भी थे। उनकी मृत्यु 2001 में एक दुर्घटना में हो गई थी।

मौत के 23 साल बाद भी ठाणे की सत्ता में आनंद दिघे का प्रभाव

ठाणे के तेंबी नाका इलाके में शिवसेना के पूर्व जिला प्रमुख रहे आनंद दिघे का आवास है। करीब 23 वर्ष पहले आनंद दिघे की एक दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी। एकनाथ शिंदे की शिवसेना के ठाणे उपनगर प्रमुख बोंटू जाधव कहते हैं कि दिघे साहेब की मौत को आज 23 साल हो गए, लेकिन यह दरबार आज भी उतना ही सजता है, जितना पहले लगता था। वह कहते हैं कि यहां पर सियासत भले कोई किसी भी पार्टी से करें, लेकिन आनंद दिघे का सम्मान उनकी मृत्यु के बाद भी सभी नेता करते हैं। उपनगर प्रमुख जाधव बताते हैं कि इस चुनाव में भी एकनाथ शिंदे की शिवसेना और उद्धव ठाकरे की शिवसेना से अलग-अलग प्रत्याशी सियासी मैदान में हैं। लेकिन आनंद दिघे साहेब की शाखा (आवास और कार्यालय) से आशीर्वाद दोनों नेताओं को चाहिए। यही वजह है कि आज भी पार्टियां भले ही अलग हो गई हों, लकिन आनंद दिघे के लिए सम्मान दोनों पार्टियों के नेताओं में बराबर है।

लातूर से आए मानिक निकम सुबह साढ़े छह बजे ही दिघे की शाखा पर पहुंच गए थे। उन्होंने कहा कि वह रात में चलकर सुबह ठाणे पहुंचे हैं। उनका कहना है कि आनंद दिघे का ठाणे की सियासत में वही स्थान है, जो महाराष्ट्र में बालासाहेब ठाकरे का है। दिघे ने ठाणे के शिवसेना जिला प्रमुख बनने के सिवाय कभी कोई दूसरा पद लिया ही नहीं। उनके इशारों पर ठाणे में पार्षद से लेकर विधायक और सांसद तक बनते थे। वह कहते हैं भले ही अब आनंद दिघे साहेब जीवित न हों, लेकिन दोनों शिवसेना के लोग इस दरबार में आकर माथा टेकते हैं। मानिक कहते हैं कि वह पहले ठाणे में ही रहकर आनंद दिघे की कार्य योजनाओं को आगे बढ़ाते थे। बाद में वे लातूर चले गए। लेकिन लातूर से अभी भी वह चुनाव के दौरान ठाणे में दिघे साहेब की शाखा से पार्टी के लिए काम करते हैं। 

बाल ठाकरे के करीबियों में गिने जाते थे आनंद दिघे

तेंबी नाका इलाके में आनंद दिघे की शाखा के सामने दुकान करने वाले राजन हटकले कहते हैं कि उन्होंने वह दौर देखा है कि जब आनंद दिघे की ठाणे में तूती बोलती थी। आनंद दिघे शिवसेना सुप्रीमो बालासाहेब ठाकरे के करीबियों में गिने जाते थे। जब महाराष्ट्र में बालासाहेब ठाकरे का एक छात्र राज्य हुआ करता था, तो ठाणे और कल्याण इलाके में आनंद दिघे का ठीक वैसा ही जलवा होता था, जैसा समूचे महाराष्ट्र में बालासाहेब ठाकरे का होता था। राजन कहते हैं कि थाने के तेंबी नाका इलाके में हर रोज दरबार लगाया जाता था। उस दरबार में आनंद दिघे बैठते थे और लोगों की समस्याओं का तुरंत निदान होता था। वह कहते हैं कई मामले तो ऐसे होते थे कि जिसमें आनंद दिघे के फैसले के बाद लोगों के पुलिस थाने और कोर्ट-कचहरी में चल रहे मुकदमे आपसी सहमति से खत्म हो जाया करते थे। चुनाव के लिए जो फैसला दिघे सुना देते थे, ठाणे की जनता उसी आधार पर मतदान कर देती थी।

शिवसेना और शिवसेना यूबीटी दोनों पार्टियों में है आनंद दिघे का सम्मान

हटकले कहते हैं कि ठाणे को शिवसेना का गढ़ कहा जाता था, तो उसकी सबसे बड़ी वजह आनंद दिघे ही थे। लोगों का उनमें भरोसा भी था और वह लोगों के लिए खड़े रहते थे। वह कहते हैं कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने आनंद दिघे की उंगली पकड़कर सियासत का ककहरा सीखा था। ठाणे में एकनाथ शिंदे की शिवसेना से लोकसभा प्रत्याशी नरेश म्हस्के कहते हैं कि वह टिकट तय होने के तत्काल बाद दिघे साहेब के आनंद आश्रम पर ही गए थे। वह कहते हैं कि साहेब की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित करने के बाद उन्होंने आशीर्वाद लिया। तब वह चुनावी मैदान में निकले हैं। ठाणे में सियासत के बड़े पुरोधा कहे जाने वाले आनंद दिघे के आवास से चंद कदम की दूरी पर ही उद्धव ठाकरे की शिवसेना से प्रत्याशी और वर्तमान सांसद राजन विचारे का कार्यालय है। उनके कार्यालय के मौजूद योगेश मोरे बताते हैं कि सियासत में शिवसेना पर एकनाथ शिंदे ने कब्जा जमाने की कोशिश की। लेकिन असली शिवसेना तो उद्धव ठाकरे की ही है। वह कहते हैं कि बालासाहेब ठाकरे के लिए जीने मरने वाले आनंद दिघे का बंटवारा मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे नहीं कर सकते। दिघे साहेब और बालासाहेब ठाकरे की विचारधारा एक ही है। इसलिए शिंदे भले ही दिघे साहेब पर अपना दावा करने लगें, लेकिन सच्चाई यही है कि हर शिव सैनिक के दिल में दिघे साहेब हैं। यही वजह है कि उनके ना रहने के बाद भी दिघे साहेब की चौखट पर सभी शिव सैनिक माथा टेकते हैं।

2024-05-04T09:13:16Z dg43tfdfdgfd