INHERITANCE TAX: विरासत कर पर भाजपा पर बरसे थरूर, कहा- कांग्रेस ने खत्म किया था कानून, बेवजह उठाया गया मुद्दा

सैम पित्रोदा के बयान के बाद देश में विरासत टैक्स को लेकर अलग ही बहस छिड़ गई है। भाजपा ने इसे अपना चुनावी मुद्दा बनाया और अलग अलग मंचों से कांग्रेस पर निशाना साधा। अब कांग्रेस नेता शशि थरूर ने इस मुद्दे पर भाजपा को आड़े हाथों लिया है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में ऐसी कोई बात नहीं कही है लेकिन सत्तारूढ़ पार्टी द्वारा इस मुद्दे को जान-बूझकर उठाया जा रहा है क्योंकि उन्हें हार का डर सता रहा है।   

‘कांग्रेस के घोषणापत्र में ऐसा कुछ भी नहीं’

बता दें कि थरूर कांग्रेस के घोषणापत्र को तैयार करने वाली टीम के सदस्य थे। उन्होंने कहा कि विरासत कर को 1985 में तत्कालीन पीएम राजीव गांधी  द्वारा समाप्त किया गया था। लेकिन इसके बाद भाजपा ने इस मुद्दे को फिर से उठाने का काम किया है। सैम पित्रोदा के विरासत कर वाले बयान पर थरूर ने कहा कि पित्रोदा भारत में नहीं बल्कि शिकागो में रहते हैं और यह उनके निजी विचार हैं। कांग्रेस जिन मुद्दों को लेकर चुनाव लड़ रही है, वे सारी बातें घोषणापत्र में लिखी गईं हैं। थरूर ने कहा ‘घोषणापत्र बनाने वाली कमेटी का सदस्य होने के नाते मैं कह सकता हूं कि पार्टी ने कभी भी विरासत कर को लेकर चर्चा नहीं की।’  

‘विरासत कर को खत्म करने का फैसला सही था’

कांग्रेस सांसद ने कहा कि 1985 में सरकार विरासत कर से एक वर्ष से 20 करोड़ रुपये कमा रही थी। इस प्रतिष्ठान को चलाने के लिए सरकार द्वारा 20 करोड़ से ज्यादा खर्च किया जा रहा था। इसलिए उस दौरान विरासत कर को खत्म करने का फैसला सही था। लेकिन, इसके बाद अब भाजपा द्वारा इस मुद्दे को उठाया गया है। 

‘भाजपा को अभी से हार का अहसास’

थरूर ने आरोप लगाया कि 2019 में भाजपा नेताओं ने विरासत कर के संदर्भ में बात की थी और कहा था यह अच्छा विचार है। कांग्रेस सांसद के अनुसार जिस कानून को कांग्रेस सरकार ने खत्म किया, भाजपा उसी मुद्दे को फिर से उठाने का काम कर रही है। उन्होंने भाजपा पर निशाना साधते हुए कहा कि सत्तारूढ़ पार्टी को अभी से अपनी हार का अहसास हो गया है। इसलिए पार्टी के नेता ऐसे मुद्दे ढूंढ रहे हैं, जिनका जिक्र कांग्रेस के घोषणापत्र में नहीं किया गया।

थरूर के अनुसार उन्होंने अपने निर्वाचन क्षेत्र में देखा है कि अरबपति अपनी संपत्ति को प्रबंधित करने में माहिर हैं। उनके पास अपने नाम पर बहुत कम संपत्ति होती है और यह भी पाया कि अरबपतियों द्वारा जमा की गई संपत्ति की लागत सरकार को मिलने वाले राजस्व से अधिक थी।

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