ANDAR KI BAAT INDORE: चालू तो हो गई, बनाए रखना बड़ी चुनौती

Andar Ki Baat Indore: अंदर की बात, कुलदीप भावसार

देर आयद, दुरुस्त आयद की तर्ज पर वर्षों इंतजार के बाद आखिर जिला न्यायालय की नई पार्किंग व्यवस्था शुरू हो ही गई। वकील भी इस नई व्यवस्था से खुश हैं और इंदौर अभिभाषक संघ भी। वकील इसलिए खुश हैं क्योंकि उन्हें वाहनों की भीड़ से मुक्ति मिल गई और संघ इसलिए क्योंकि उसे ठेकेदार से मोटी राशि मिल गई। हालांकि नई व्यवस्था ने जिला न्यायालय के आसपास के क्षेत्रों के दुकानदारों की परेशानी बढ़ा दी है। दरअसल, जिला न्यायालय की पार्किंग सशुल्क होने से पेशियों पर आने वाले पक्षकार न्यायालय के आसपास की गलियों में अपने वाहन पार्क करने लगे हैं। इसका सीधा असर ठेके पर पार्किंग लेने वाले ठेकेदार की आर्थिक सेहत पर पड़ रहा है क्योंकि अभिभाषकों, न्यायाधीशगण और न्यायिक कर्मचारियों के लिए पार्किंग निश्शुल्क है और पक्षकार वाहन पार्किंग में खड़े नहीं कर रहे। ठेकेदार ने यह बात वकीलों को बता भी दी है।

गिनती के हैं, उसमें भी सेंध लगाने की तैयारी

मतदान से पहले भाजपा एक बार फिर बड़ा धमाका करने जा रही है। 25 अप्रैल को मुख्यमंत्री की मौजूदगी में बड़ी संख्या में कांग्रेसियों को भाजपा में शामिल करने की तैयारी चल रही है। कोशिश है कि सिर्फ कार्यकर्ताओं को ही नहीं बल्कि कुछ बड़े नामों को भी भाजपा में शामिल किया जाए। इसके लिए पार्टी के वरिष्ठ नेता कुछ कांग्रेसी पार्षदों से भी संपर्क साध रहे हैं। बताया जा रहा है कि कांग्रेसी पार्षद उन्हें अच्छा खासा रिस्पांस दे भी रहे हैं। कुछ दिन पहले ही पद से हटाई गई एक कांग्रेसी नेत्री के पार्टी बदलने की संभावना तलाशने की जिम्मेदारी भाजपा के एक वरिष्ठ नेता को सौंपी गई है। भाजपा के प्रयास कितने सफल होंगे, यह तो 25 अप्रैल को ही साफ होगा, लेकिन इतना जरूर है कि पहले से गिने-चुने पार्षदों के साथ किला लड़ा रही कांग्रेस के सामने अब और सिमट जाने का खतरा खड़ा हो गया है।

नीरस चुनाव, उदासीन मतदाता, बढ़ रही दलों की चिंता

लोकसभा चुनाव का बिगुल बजे एक माह से अधिक समय बीत चुका है, लेकिन अब तक कहीं चुनावी माहौल नहीं बन सका। नीरसता के साथ चल रहे प्रचार को लेकर मतदाता भी उदासीन हैं। उसकी यही उदासीनता दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों की चिंता बढ़ा रही है। आमजन का कहना है कि उन्होंने ऐसा नीरस चुनाव इसके पहले कभी नहीं देखा। ऐसा लग रहा है कि भाजपा और कांग्रेस, दोनों ही दल इस चुनाव को बेमन से लड़ रहे हैं। एक ने मान लिया है कि खोने को कुछ नहीं है और दूसरे ने सोच लिया है कि कुछ मिलना ही नहीं है। किंतु पार्टियां भूल रही हैं कि कुछ किए बिना ही जय-जयकार नहीं होती। मतदाता की यह उदासीनता चुनाव परिणाम पर कितना असर डालेगी, यह तो चार जून को स्पष्ट हो जाएगा, लेकिन मतदाता की उदासीनता जितनी जल्दी खत्म हो जाए, लोकतंत्र के लिए उतना ही अच्छा है।

डेढ-दो साल बाद बिल लगाने का गणित

नगर निगम में 28 करोड़ 76 लाख रुपये के फर्जी बिल कांड के सामने आने के बाद अधिकारियों की नींद उड़ी हुई है। जानकारों की मानें तो यह खेल बहुत पहले से चल रहा है और इसकी जड़ें ड्रेनेज विभाग ही नहीं अन्य विभागों तक फैली हुई है। अंतर सिर्फ इतना है कि वहां करोड़ों के बजाय लाखों के वारे-न्यारे हो रहे हैं। निगम के कर्मचारी अधिकारियों के तार भी शुभ-लाभ के इस गणित से जुड़े हुए हैं। निगम के एक ठेकेदार तो डेढ़ से दो वर्ष बाद बिल लगाने के लिए पहचाने जाते हैं। हालांकि आज तक कोई यह नहीं समझ सका कि आखिर ये ठेकेदार ऐसा क्यों करते हैं। अब जब फर्जी बिल कांड सामने आया है, तो जांच दल में शामिल अधिकारी इस ठेकेदार की कुंडली निकालने में जुट गए हैं। बताया जा रहा है कि फर्जी बिल कांड की बारिकी से जांच हुई तो कई नए-पुरानों का नपना तय है।

2024-04-23T08:04:34Z dg43tfdfdgfd