क्या इंटरनेशनल कोर्ट में है पुतिन के खिलाफ 'कार्रवाई' करने की ताकत?

नीदरलैंड के हेग में स्थित इंटरनेशनल क्रिमिलन कोर्ट (आईसीसी) यानि अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन  के खिलाफ गिरफ्तारी का वारंट जारी किया है. पुतिन और उनके साथ ही रूस की बाल अधिकार कमिश्नर मारिया लवोवा बेलावा के खिलाफ भी वारंट जारी किया गया है. दोनों पर यूक्रेन में युद्ध अपराध के गैरकानूनी रूप से बच्चों को यूक्रेन से रूस पहुंचाने के आरोप में ये वारंट जारी किए गए हैं, लेकिन एक बड़ा सवाल यही है कि क्या संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य देश के प्रमुख के खिलाफ इस तरह का वारंट कारगर हो सकेगा और इस तरह के मामले में आईसीसी के पास कितनी और किस तरह की शक्तियां हैं.

24 साल पहले हुई थी कोर्ट की स्थापना

वारंट की जानकारी कोर्ट की वेबसाइट पर दी गई है. यह वारंट कितना कारगर हो सकता है इसके लिए आईसीसी के अंतरराष्ट्रीय  महत्व, भूमिका और प्रभाव को समझने की जरूरत होगी. कोर्ट की स्थापना 1998 में रोम स्टैट्यूट के जरिए हुई थी जिसके आज 123 देश सदस्य हैं. यह अदालत अंतरराष्ट्रीय स्तर के गंभीर अपराध जैसे कि नरसंहार, युद्ध अपराध, मानवता के खिलाफ अपराध और आक्रमण जैसे अपराधों की पड़ताल कर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करती है.

कौन से देश हैं इसके सदस्य

लेकिन रूसयूक्रेन युद्ध के हालात काफी अलग हैं क्योंकि यहां दुनिया के दो बड़े देशों की भूमिका है. जहां 123 सदस्य देशों में ब्रिटेन, जापान, अफगानिस्तान और जर्मनी जैसे देश शामिल हैं, वहीं अमेरिका इसक सदस्य नहीं है और भारत और चीन भी इसके सदस्यता से दूर हैं. वहीं खुद रूस भी इसका सदस्य नहीं है.

केवल गंभीर अपराधों और व्यक्तियों के लिए

आईसीसी की स्थापना का मकसद तभी उन गंभीर अपराधों के खिलाफ कार्रवाई करना है जब किसी देश का कानूनी तंत्र उनसे निपटने में नाकाम हो जाता है जैसा कि यूगोस्लाविया और रवांडा में हुआ था. इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (आईसीजे) या अंतरराष्ट्रीय न्यायालय जहां दो देशों के बीच विवादों को सुलझाने के लिए है, आईसीसी व्यक्तिगत लोगों पर कार्रवाई करता है.

इस वारंट के कारण रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को 123 देशों में गिरफ्तार किया जा सकता है, लेकिन व्यवहारिक तौर पर यह हो ना पाएगा. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Wikimedia Commons)

आईसीसी की सीमाएं

आईसीसी अपने अस्तित्व में आने (1जुलाई 2002) के बाद ही हुए अपराधों की पड़ताल कर सकता है. इसके अलावा जो अपराध हैं वे उन्हीं देशों में होने चाहिए जो आसीसी के सदस्य हैं जिससे कोर्ट को उनके खिलाफ जांच पड़ताल आदि करने का अधिकार मिलता हैं क्योंकि सदस्य देशों ने कोर्ट को ऐसे अधिकार दे रखे हैं.

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संयुक्त राष्ट्र की भूमिका

इसके आलावा आईसीसी उन मामलों की पड़ताल भी कर सकता है जिन्हें संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद उसे सौंपे. लेकिन यहां पेंच यह है कि सुरक्षा परिषद यदि पुतिन के खिलाफ कोई मामले सौंपने की कोशिश भी करेगा तो फिर रूस उसके खिलाफ वीटो इस्तेमाल कर देगा. एक पहलू यह है आईसीसी के दायरे में यूक्रेन के मामले में भी नहीं आते क्योंकि खुद यूक्रेन उसका सदस्य नहीं.

खुद संयुक्त राष्ट्र भी आईसीसी को कोई मामला जांच के लिए सौंप सकता है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Wikimedia Commons)

तो फिर आईसीसी यूक्रेन के मामले में क्यों?

यह सच है कि यूक्रेन आईसीसी का सदस्य देश नहीं है. लेकिन यूक्रेन ने उससे अपने ही देश में पिछले साल ही आईसीसी को न्यायाधिकार दिया है जिसके तहत आईसीसी के अधिवक्ता करीम खान साल भर में चार बार यूक्रेन का दौरा कर चुके हैं और वहां जांच पड़ताल कर रहे हैं. यही वजह है कि आईसीसी इस तरह के वारंट जारी कर पाया है.

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साफ है कि रूस इस वारंट को कोई तवज्जो नहीं देने वाला था. रूसी खुद पुतिन ने इसे टॉयलेट पेपर की तरह रद्दी करार दिया है. दूसरी तरफ यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की का कहना है कि इससे एतिहासिक उत्तरदयित्व  सुनिश्चित हो सकेगा. जबकि कानून के मुताबिक पुतिन 123 देशों में गिरफ्तार हो सकते हैं. कुल मिलाकर यह रूस को मानवीय अपराध करार देने का प्रयास हो सकता है, जिसका नतीजा कुछ भी हो, इससे रूस और पुतिन की छवि तो खराब हो ही सकती है.

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