हाथरस के सबक

उत्तर प्रदेश के हाथरस में मची भगदड़ के कारण इतनी बड़ी संख्या में हुई श्रद्धालुओं की मौत तकलीफदेह तो है ही, हमारे तंत्र पर एक बड़ा सवाल भी है। ऐसे हादसे अपने देश के लिए नए नहीं हैं, समय-समय पर अलग-अलग क्षेत्रों से ऐसी खबरें आती रहती हैं। इन घटनाओं का दोहराव बताता है कि इनसे जरूरी सबक लेकर कारगर कदम उठाने का काम ठीक से नहीं हो रहा।

लापरवाही या साजिश : जहां तक हाथरस में हुई घटना की बात है तो शुरू में इसे लापरवाही का नतीजा ही माना जा रहा था। लेकिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने घटनास्थल का दौरा करने और पीड़ितों से बातचीत समेत सभी संभव स्रोतों से ब्यौरा लेने के बाद कहा है कि इसके पीछे साजिश हो सकती है। उन्होंने घटना की न्यायिक जांच के आदेश दे दिए हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि जांच टीम मामले की तह तक जाकर इससे जुड़े सभी पहलुओं की पड़ताल करेगी और इसके वास्तविक कारणों का पता लगाने के साथ ही बचाव के कारगर उपाय भी सुझाएगी।

सेवादारों की भूमिका : जो शुरुआती तथ्य अब तक सामने आए हैं वे भी कई अहम सवाल खड़े करते हैं। मिसाल के तौर पर बकौल खुद मुख्यमंत्री, सेवादारों की भूमिका संदेह के दायरे में है। कहा जाता है कि कुछ सेवादारों ने भक्तों को धक्के दिए। इससे भगदड़ के हालात बने। कुछ हलकों में भक्तों पर पानी छोड़ने की बात कही जा रही है जिससे कीचड़ बनी और कई महिलाएं उसमें गिरीं। प्रशासन के स्तर पर पर्याप्त इंतजाम न होने की शिकायतें भी हैं।

इंसान या भगवान : निश्चित रूप से प्रशासनिक व्यवस्था की कमियां दूर करने, एसओपी तैयार करने और उस पर अमल सुनिश्चित करने का काम तत्काल प्रभाव से शुरू होना चाहिए, लेकिन जिन वजहों से और जितनी बड़ी संख्या में लोग इस सत्संग के लिए इकट्ठा हो गए, उन्हें भी अनदेखा नहीं किया जा सकता। मसलन, सत्संग के लिए आए कुछ लोगों ने बताया कि वे यह देखने आए थे कि ये बाबा इंसान हैं या भगवान। किन-किन तरीकों से ऐसे बाबाओं का समाज में क्रेज बनाया जाता है, उसे समझना भी समस्या को हल करने की प्रक्रिया का अभिन्न हिस्सा है।

आस्था और अंधविश्वास का फर्क : भारत जैसे देश में आस्था की बड़ी जगह है। हर व्यक्ति की आस्था का सम्मान हर हाल में होना भी चाहिए। लेकिन यह याद रखना भी जरूरी है कि आस्था और अंधविश्वास में बड़ा बारीक लेकिन महत्वपूर्ण अंतर होता है। आस्था के नाम पर समाज में अंधविश्वास फैलाने और लोगों के विश्वास का बेजा फायदा उठाने की इजाजत किसी को नहीं होनी चाहिए। यह रास्ता कठिन है और बहुत सावधानी की मांग करता है, लेकिन ऐसे हादसों को रोकना है तो यह रास्ता तय करना ही होगा।

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