विपक्षी गठबंधन में रार

महाराष्ट्र में सीट बंटवारे पर लंबी बातचीत के बाद भी किसी नतीजे पर पहुंचे बगैर जिस तरह से शिवसेना (UBT) ने अपने उम्मीदवारों की पहली सूची जारी कर दी और प्रकाश आंबेडकर की वंचित बहुजन आघाड़ी ने बातचीत समाप्त करते हुए अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी, वह विपक्षी दलों के एकजुटता प्रयासों पर सख्त टिप्पणी है।

तालमेल की कमी : इस तरह के एकतरफा फैसले बताते हैं कि विपक्षी दलों ने देशव्यापी गठबंधन I.N.D.I.A. की घोषणा भले कर दी हो, उनमें आपसी मतभेदों को बातचीत से सुलझाने का कोई कारगर मैकेनिज्म डिवेलप नहीं हो पाया है। इससे वोटरों के एक हिस्से के मन में बैठे इस संदेह को भी ताकत मिलती है कि जब ये दल चुनाव से पहले कोई तालमेल नहीं बना पा रहे तो बहुमत मिलने के बाद पांच साल सरकार कैसे चलाएंगे।

कांग्रेस में तीखी प्रतिक्रिया : हालांकि चाहे बात मुंबई की हो या सांगली की, दोनों जगह शिवसेना (UBT) के इस कदम से कांग्रेस ही प्रभावित हो रही दिखती है। सांगली पारंपरिक तौर पर कांग्रेस की सीट रही है। वहां आजादी के बाद से 2014 तक कांग्रेस ही जीतती रही है। वह राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री वसंत दादा पाटिल की सीट रही है। इस बार उनके पोते विशाल पाटिल को कांग्रेस का टिकट दिए जाने की चर्चा थी।

लीडरशिप को अल्टिमेटम : मुंबई कांग्रेस की मौजूदा अध्यक्ष वर्षा गायकवाड़ और पूर्व अध्यक्ष संजय निरुपम दोनों इस स्थिति से नाराज बताए जाते हैं। निरुपम ने तो अल्टिमेटम देते हुए यहां तक कह दिया है कि अगर पार्टी नेतृत्व इस मसले पर कोई स्टैंड नहीं लेता तो उनके सभी विकल्प खुले हैं। कांग्रेस के लिए यह कठिन स्थिति इसलिए भी है कि इससे कार्यकर्ताओं में यह संदेश जा सकता है कि पार्टी अपनी जमीन बचाने को लेकर गंभीर नहीं है।

हारी हुई सीटें : लेकिन ज्यादा सीटों पर लड़ने के बजाय विपक्षी गठबंधन की सीट संख्या बढ़ाने के घोषित लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए देखें तो कांग्रेस नेतृत्व का कथित नरम रुख असंगत नहीं लगता। मुंबई की ये सीटें पिछले दोनों लोकसभा चुनावों में पार्टी हार चुकी है। दूसरी तरफ शिवसेना (UBT) के सामने पिछले चुनाव में अविभाजित पार्टी की जीती तमाम सीटें बचाने की चुनौती है। संभवत: यही वजह है कि कांग्रेस ने आधिकारिक तौर पर कड़ा बयान जारी नहीं किया है।

गठबंधन को झटका : वंचित बहुजन आघाड़ी का बाहर निकलना जरूर विपक्षी गठबंधन के लिए एक झटका है। वह भले ज्यादा सीटें न निकाल पाए लेकिन कई सीटों पर फैसले को प्रभावित करने की स्थिति में है। कुल मिलाकर देखें तो I.N.D.I.A. से जुड़ी पार्टियां अगर चुनावी लड़ाई से पहले हार नहीं जाना चाहतीं तो उन्हें आपसी विवाद और सार्वजनिक सरफुटौव्वल से बनते नैरेटिव को गंभीरता से लेना होगा।

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