रोजगार मांगने में टूट रही जाति की दीवार

बिहार सहित देश के अन्य राज्यों में जाति की जकड़न मजबूत है। राजनीति हो या लोगों का सामान्य जनजीवन, हर जगह जाति का बोलबाला है। यहां तक कि लोग बातचीत में भी अपनी-अपनी जात बता गर्व महसूस करते हैं, लेकिन जब बात रोजगार की हो तो जात की जकड़न टूटती हुई दिख रही है। नेशनल कैरियर सर्विस पोर्टल पर उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार बिहार में एक तिहाई से अधिक लोग रोजगार मांगते समय जाति का उल्लेख नहीं कर रहे हैं। देश में जाति नहीं बताने वालों का औसत एक चौथाई है।

केन्द्र व राज्य सरकार की ओर से समय-समय पर नियोजन सह मार्गदर्शन मेला लगाकर बेरोजगारों को रोजगार दिया जाता है। इस मेले में भाग लेने वाले बेरोजगारों को अनिवार्य रूप से एनसीएस पोर्टल पर निबंधन करना है। निबंधन के समय बेरोजगारों को अपनी शैक्षणिक योग्यता के साथ ही नाम, पता, उम्र के साथ-साथ जाति भी बतानी है। लेकिन जाति की जानकारी देने से बिहार के लोग परहेज करने लगे हैं। वित्तीय वर्ष 2015-16 से ऑनलाइन निबंधन का काम चल रहा है। अब तक पोर्टल पर 18 लाख 11 हजार से अधिक बेरोजगारों ने निबंधन कराया है। इसमें से छह लाख 36 हजार से अधिक यानी 35.12 फीसदी बेरोजगारों ने जाति का उल्लेख नहीं किया।

हालांकि, बाकी बेरोजगारों ने अपनी-अपनी जाति (समूह) की जानकारी दी है। इसके तहत दो लाख 32 हजार सामान्य वर्ग, छह लाख 43 हजार ओबीसी, दो लाख 11 हजार अनुसूचित जाति और 31 हजार 800 अनुसूचित जनजाति तबके से हैं। अन्य श्रेणी के 56 हजार 528 बेरोजगारों ने निबंधन कराया है। बिना जाति बताए पोर्टल पर निबंधन करने का राष्ट्रीय औसतत 25.12 फीसदी है। पड़ोसी राज्य झारखंड में 23.49 फीसदी, उत्तरप्रदेश से 37.16 फीसदी तो पश्चिम बंगाल से 10.90 फीसदी बेरोजगारों ने रोजगार मांगने में अपनी जाति का उल्लेख नहीं किया है।

2024-07-05T14:49:52Z dg43tfdfdgfd