झारखंड की सियासत के चाणक्य ने सुलगाई कोयलांचल की सियासत

झारखंड की सियासत के चाणक्य कहे जाने वाले निर्दलीय विधायक सरयू राय ने धनबाद से निर्दलीय उम्मीदवार के रुप में लोकसभा चुनाव लड़ने का ऐलान करके कोयलांचल की सियासत को सुलगा दिया है. उनके चुनावी मैदान में उतरने से धनबाद सीट पर त्रिकोणीय मुकाबले की तस्वीर बन रही है. यहां उनका सामना भारतीय जनता पार्टी-बीजेपी प्रत्याशी ढुलू महतो और कांग्रेस उम्मीदवार अनुपमा सिंह से होने जा रहा है.

सरयू राय 2014 से 2019 के बीच झारखंड की रघुवर दास सरकार में खाद्य आपूर्ति मंत्री थे, पर मुख्यमंत्री से कभी उनकी बनी नहीं. दोनों के बीच रिश्ते इतने तल्ख हो गए कि 2019 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी से उनका टिकट कट गया. गुस्से से लाल-पीले सरयू राय ने अपनी सीट जमशेदपुर पश्चिमी छोड़ दी और तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास को चुनौती देने के लिए उनकी विधानसभा सीट जमशेदपुर पूर्वी से खड़े हो गए. रघुवर दास 5 बार से जमशेदपुर पश्चिमी से विधायक रहे हैं. पर जब रिजल्ट आया, तो मुख्यमंत्री की कुर्सी पर रहते रघुवर दास को अपने ही मंत्री सरयू राय के हाथों 15,833 वोट से शिकस्त खानी पड़ी. इस विधानसभा चुनाव में बीजेपी की करारी हार हुई और रघुवर दास को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा. झारखंड में झारखंड मुक्ति मोर्चा- जेएमएम की सरकार बनी. इस हार के साथ रघुवर दास की सक्रिय राजनीति का अंत हो गया. वे चुनावी सियासत से दूर फिलहाल ओडिशा के राज्यपाल हैं.

धनबाद से क्यों ठोंक रहे ताल

धनबाद से लगातार 3 बार बीजेपी सांसद रहे पीएन सिंह का टिकट काट कर इस बार बाघमारा के विधायक ढुलू महतो को उम्मीदवार बनाया गया है. ढुलु महतो के नाम का ऐलान होते ही सरयू राय का पुराना दर्द फिर छलक गया. उन्होंने इशारे-इशारे में पुराने राजनीतिक दुश्मन और ओडिशा के राज्यपाल रघुवर दास पर निशाना साधा. ढुलू महतो को धनबाद से बीजेपी प्रत्याशी बनाने में उनकी भूमिका पर सवाल उठाए. इसी बीच ढुलू महतो सरयू राय के समर्थक और मारवाड़ी समाज के नेता कृष्णा अग्रवाल से उलझ गए. फिर क्या था. सरयू राय जमशेदपुर से सीधे धनबाद पहुंचे और बीजेपी के साथ-साथ ढुलू महतो के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. उन्होंने मीडिया के सामने ढुलू महतो पर दर्ज 50 केसों का पिटारा खोल दिया और उन्हें चुनाव लड़ने के अयोग्य करार दे दिया. इसके साथ ही उन्होंने धनबाद से लोकसभा चुनाव लड़ने का ऐलान भी कर दिया.

बीजेपी का गढ़ रहा है धनबाद

करीब 22 लाख मतदाता वाला धनबाद झारखंड की सबसे बड़ी लोकसभा सीट है. यहां अब तक 13 बार हुए लोकसभा चुनाव हुए हैं और इनमें से 7 बार बीजेपी तथा 3-3 बार कांग्रेस और निर्दलीय प्रत्याशियों को जीत मिलती रही है. 2019 में बीजेपी प्रत्याशी पीएन सिंह ने कांग्रेस प्रत्याशी कीर्ति आजाद को 4,86,194 वोट से हराया था. एसटी, एससी, मुस्लिम और सवर्ण मतदाताओं के दबदबे वाली धनबाद सीट में 3 लाख से ज्यादा आदिवासी वोटर हैं. इतनी ही आबादी मुस्लिम समुदाय की बतायी जाती है. जबकि अनुसूचित जाति और सवर्ण मतदाताओं की तादाद 2-2 लाख के आसपास बतायी जाती है. 2019 के लोकसभा के बाद हुए विधानसभा चुनाव में धनबाद की 6 में से 5 विधानसभा सीटों पर बीजेपी का कब्जा हो गया.

धनबाद लोकसभा में सबसे ज्यादा शहरी वोटर माने जाते हैं. नौकरी और व्यवसाय के लिए बिहार, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश से आ कर बसे ये 60-65 फीसदी शहरी वोटर ही उम्मीदवारों की जीत-हार में निर्णायक भूमिका निभाते रहे हैं. जमशेदपुर में राजनीति करने वाले सरयू राय की इन मतदाताओं पर मजबूत पकड़ मानी जाती है.

सवर्ण वोट में सेंधमारी का प्लान

धनबाद से ढुलू महतो के बीजेपी उम्मीदवार बनते ही विरोध के स्वर फूटने लगे. बीजेपी से धनबाद के साथ चतरा से भी राजपूत प्रत्याशी का टिकट कटने से क्षत्रिय समाज की नाराजगी उभर कर सामने आ गई. इतना ही नहीं बीजेपी का कोर वोटर माना जाने वाला वैश्य समाज भी उग्र हो गया. सरयू राय को विरोध की इसी चिंगारी में उम्मीद की किरण दिखाई दे रही है. भाजपा से नाराज राजपूत और वैश्य मतदाताओं के झुकाव की बदौलत सरयू राय धनबाद से जीत की राह तलाशते दिख रहे हैं. इस हालत में भारतीय जनता पार्टी का कोर वोटर राजपूत समाज सरयू राय के साथ खड़ा होता है, तो बीजेपी को नुकसान हो सकता है. पर पिछड़ी जातियों के बीच अगड़ी जातियों की नाराजगी का मैसेज गया, तो बीजेपी के पक्ष में पिछड़ी जातियों की गोलबंदी हो सकती है. धनबाद में पहले से ही बाहरी-भीतरी की लड़ाई होती आई है. ऐसे में सरयू राय को भले ही अगड़े मतदाताओं का साथ मिल जाए. पर पिछड़ी जातियों को वो अपने पाले में कर पाएंगे, इसमें संदेह दिखता है.

अनुपमा सिंह ने मांगा आशीर्वाद

धनबाद से कांग्रेस उम्मीदवार घोषित होते ही अनुपमा सिंह सरयू राय से आशीर्वाद लेने जमशेदपुर पहुंच गईं. उनके साथ उनके कांग्रेस विधायक पति अनूप सिंह भी थे. अनूप सिंह के दिवंगत पिता राजेंद्र सिंह सरयू राय के पुराने मित्र रहे थे. इस नाते उन्होंने उनसे धनबाद लोकसभा से जीत के आशीर्वाद के साथ-साथ समर्थन भी मांगा. अनुपमा सिंह की उम्मीदवारी से सरयू राय के तेवर नरम पड़ गए हैं. उन्होंने कहा है कि वे समर्थकों से विचार-विमर्श करने के बाद ही लोकसभा चुनाव लड़ने या न लड़ने पर फैसला लेंगे. सरयू राय अनुपमा सिंह के समर्थन में मैदान से हटते हैं, तो धनबाद से कांग्रेस की राह थोड़ी आसान हो सकती है.

बिहार जन्मभूमि, झारखंड कर्मभूमि

मूलरूप से बिहार के बक्सर के रहने वाले सरयू राय ने 1974 के आंदोलन के माध्यम से सियासत में पहला कदम रखा था. आपातकाल के दिनों में उन्हें जेल भी जाना पड़ा था. उस समय वे विद्यार्थी परिषद से जुड़े थे. 1992 में लालकृष्ण आडवाणी से मिले और इस तरह से उनकी बीजेपी में इंट्री हुई. भाजपा में रहते उनकी राष्ट्रीय स्वयं सेवक में मजबूत पैठ बनी. 2005 में सरयू राय बीजेपी के टिकट पर जमशेदपुर पश्चिम विधानसभा सीट से पहली बार जीते. तब उन्होंने समाजवादी पार्टी प्रत्याशी बन्ना गुप्ता को हराया था. पर 2009 में कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में बन्ना गुप्ता ने उन्हें 3297 वोट से हरा दिया था. 2014 में बीजेपी के टिकट उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी बन्ना गुप्ता को 10 हजार वोट से हरा कर बदला ले लिया. तब रघुवर दास के नेतृत्व में बनी सरकार में वो खाद्य आपूर्ति मंत्री बनाए गए. पर मुख्यमंत्री रघुवर दास से उनकी बनी नहीं.

चारा घोटाले का किया था पर्दाफाश

सरयू राय की बदौलत 1994 में झारखंड के बहुचर्चित चारा घोटाले का पर्दाफाश हुआ था. इसके साथ ही उस समय पहली बार उनका नाम सुर्खियों में आया. उनके प्रयास से चारा घोटाले की सीबीआई जांच हुई और लालू प्रसाद, जगन्नाथ मिश्र से लेकर कई दिग्गज नेताओं को जेल की हवा खानी पड़ी. उनके प्रयास से बिहार के अलकतरा घोटाले का भंडाफोड़ हुआ. झारखंड के खनन घोटाले का खुलासा करने में भी उनकी अहम भूमिका रही थी.

2024-04-19T09:51:37Z dg43tfdfdgfd