1857 के विद्रोह की आग, A और Z कोड और दंड का विधान... ऐसे 164 साल पहले बनी थी मैकाले की IPC

जुलाई की पहली तारीख से देश का क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम पूरा बदल गया है. क्योंकि क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम को चलाने वाले तीन नए कानून लागू हो गए हैं.

एक जुलाई से आईपीसी की जगह भारतीय न्याय संहिता, सीआरपीसी की जगह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और इंडियन एविडेंस एक्ट की जगह भारतीय साक्ष्य अधिनियम ने ले ली है.

विपक्ष का कहना है कि नए कानूनों की जरूरत नहीं थी. जबकि, गृह मंत्री अमित शाह का कहना है कि पुराने कानून 'दंड' देते थे, जबकि नए कानून 'न्याय' देने की बात कहते हैं. पिछले साल जब इन कानूनों को संसद में पेश किया गया था, तब अमित शाह ने कहा था कि ये औपनिवेशिक कानून है और इन्हें अंग्रेजों ने गुलाम प्रजा पर शासन करने के लिए बनाया था.

बहरहाल, हमारे क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम में अब तक 164 साल पुरानी आईपीसी यानी इंडियन पीनल कोड थी. आईपीसी में अपराधों को परिभाषित किया गया था और उनके लिए सजा तय की गई थी. अब आईपीसी की जगह भारतीय न्याय संहिता ने ले ली है. 

आईपीसी के पीछे अंग्रेज वकील थॉमस बबिंगटन मैकाले का दिमाग था. उन्होंने एक बार अपने कानूनी अनुभव को मुर्गे और मुर्गियों को चुराने वाले को दोषी ठहराने तक सीमित बताया था. लेकिन उनका दिमाग तेज था. कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से कानून की पढ़ाई करने के बाद वो राजनीति में आए. और 1830 में महज 30 साल की उम्र में हाउस ऑफ कॉमन्स के सदस्य चुने गए.

जब भारत आए मैकाले

साल 1833 में यूके की संसद में चार्टर एक्ट पर बहस हो रही थी. ये वो कानून था जो भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के कामकाज को काफी हद तक बदल देने वाला था. इस कानून में एक प्रावधान था, जिसके तहत गवर्नर जनरल काउंसिल में एक लॉ मेंबर का पद बनाया.

कानून पर चर्चा के दौरान मैकाले ने सुझाव दिया कि भारत में एक ऐसा कोड यानी संहिता होनी चाहिए, जिसमें एकरूपता भी हो और विविधता भी.

लगभग एक महीने बाद मैकाले ने अपनी बहन को एक चिट्ठी लिखी, जिसमें उन्होंने कहा कि भारत में उन्हें सालाना 10 हजार पाउंड सैलरी मिलेगी. कलकत्ता (अब कोलकाता) में वो पांच हजार पाउंड में भी शानो-शौकत से रह सकेंगे. उन्होंने अपनी बहन से कहा था कि 39 साल की उम्र में वो इंग्लैंड वापस लौट आएंगे.

इस तरह तैयार हुई आईपीसी

मैकाले 1834 में भारत आए और गवर्नर जनरल काउंसिल में बतौर लेजिस्लेटिव मेंबर काम करने लगे. चार्टर एक्ट के जरिए लॉ कमीशन बना और मैकाले को इसका अध्यक्ष नियुक्त किया गया. इस पद पर रहते हुए उन्होंने भारत के आपराधिक कानूनों पर काम करना शुरू कर दिया.

लॉ कमीशन में पांच और सदस्य थे, लेकिन आपराधिक कानून तैयार करने की सारी जिम्मेदारी मैकाले के कंधों पर थी. उन्होंने जो क्रिमिनल कोड तैयार किया, वो संक्षिप्त था, लेकिन उन्होंने उदाहरण के साथ चीजें समझाई थीं. उन्होंने जिस तरह से क्रिमिनल कोड को समझाया था, वो तरीका आज भी इस्तेमाल किया जाता है. 

उन्होंने क्रिमिनल कोड में चोरी को समझाते हुए बताया था- 'A और Z अच्छे दोस्त हैं. लेकिन Z की गैरमौजूदगी में A उसकी लाइब्रेरी में जाता है और वहां से किताब उठा लेता है. अगर A ये मानता है कि किताब पढ़ने के लिए Z की सहमति थी तो ये चोरी नहीं कहलाएगी. लेकिन वो A अपने फायदे के लिए Z की किताब बेचता है तो वो चोरी कहलाएगी. और इसे अपराध माना जाएगा.'

1834 में ही मैकाले की अगुवाई में इंडियन पीनल कोड (आईपीसी) का पहला ड्राफ्ट तैयार हुआ, जिसे 1834 में गवर्नर जनरल काउंसिल को सौंपा गया. 1837 में आईपीसी का फाइनल ड्राफ्ट सौंपा गया, लेकिन इसमें भी कुछ संशोधन सुझाए गए. आईपीसी का पूरा मसौदा 1850 में तैयार हुआ. 1856 में इसे लेजिस्लेटिव काउंसिल के सामने पेश किया गया.

थॉमस मैकाले. (फाइल फोटो-Getty Images)

मैकाले की मौत के बाद लागू हुई आईपीसी

मैकाले ने आईपीसी का ड्राफ्ट तैयार किया था, लेकिन उनके जीते जी ये लागू नहीं हो सकी. 1859 में मैकाले की मौत के एक साल बाद अक्टूबर 1860 में इसे पास किया गया. 1 जनवरी 1862 से आईपीसी को लागू किया गया.

आईपीसी को 23 चैप्टर में बांटा गया था. इसमें 511 धाराएं थीं. आईपीसी के कुछ अपराध सिर्फ भारत तक ही सीमित नहीं रहे, बल्कि जहां-जहां ब्रिटिश साम्राज्य था, वहां-वहां इन्हें अपराध माना गया. मसलन, अप्राकृतिक संबंध सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि ब्रिटेन में भी अपराध बन गया.

कुछ जानकार मानते थे कि मैकाले भारतीय रीति-रिवाजों को पसंद नहीं करते थे और आईपीसी में इसकी झलक भी दिखी. आईपीसी ने ब्रिटिश शासन को और भी ज्यादा प्रभावी बना दिया था.

आईपीसी को 'दंड' देने वाला क्यों कहा जाता है?

ब्रिटेन ने जब भारत पर शासन शुरू किया, तब यहां कई सारे और अलग-अलग कानून थे. और उनमें भी ज्यादातर कानून अलिखित थे. इसलिए एक ऐसे कोड की जरूरत हुई, जो न सिर्फ लिखित हो, बल्कि सभी के लिए हो.

मैकाले को आईपीसी तैयार करने के लिए काफी छूट दी गई थी, लेकिन उनके ड्राफ्ट को लागू होने में कई साल का वक्त लग गया. आईपीसी सालों तक अधर में लटका रहा.

हालांकि, 1857 के विद्रोह ने काफी कुछ बदल दिया. इस विद्रोह के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी का राज खत्म हो गया और ब्रिटिश क्राउन ने नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया. इसके बाद ऐसे कानून की जरूरत थी, जो अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह को दबा सके.

उदाहरण के लिए, आईपीसी में राजद्रोह के अपराध को शामिल किया गया था. इसमें था कि जो कोई भी बोलकर, लिखकर या किसी भी तरह से ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ असंतोष की भावनाएं भड़काता है या भड़काने की कोशिश करता है, उसे आजीवन कारावास या तीन साल की जेल की सजा दी जाएगी.

आईपीसी के लागू होने के अगले 20 साल बाद क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम को लेकर दो और कानून अंग्रेज लेकर आए. पहला था- इंडियन एविडेंस एक्ट जिसे 1872 में लागू किया. दूसरा था- सीआरपीसी जिसे 1882 में लागू किया गया था.

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2024-07-02T10:38:07Z dg43tfdfdgfd